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________________ -३३४] १२. धर्मानुप्रेक्षा २३९ पञ्चातिचारा वर्जनीयाः । तत्कथमिति चेत् । 'बन्धवधच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः । निजेष्टदेशगमनप्रतिबन्धकरणं रज्जुश्रृंखलादिभिः बन्धन बन्धः। १ । यष्टित नवेत्रदण्डादिभिः प्राणिनां ताडन हननं वधः । २ । कर्णकंबलनासिकाङ्गुलिलिङ्गप्रजनचक्षुरादीनाम् अवयवानां विनाशनं छेदः । ३ । न्यायाद्धारादधिकभारवाहनं राजदानादिलोभादतिभारारोपणं बहुभारधारणम् । ४ । गोमहिषीबलीवर्दवाजिगजमहिषमानवशकुन्तादीनां क्षुधातृषादिपीडोत्पादनम् अन्नपाननिरोधः।५। प्रथमाणुव्रतधारिणां पञ्चातिचारा वर्जनीयाः । अथ प्रथमव्रते यमपालमातङ्गबलकुमारयोः कथा ज्ञातव्या ॥३३२॥ अथ द्वितीयव्रतं गाथाद्वयेन व्यनक्ति हिंसा-वयणं ण वयदि कक्कस-चयणं पि जो ण भासेदि। णिट्टर-वयणं पि तहा ण भासदे गुल्झ-वयणं पि ॥ ३३३ ॥ हिद-मिद-वयणं भासदि संतोस-करं तु सब-जीवाणं । धम्म-पयासण-वयणं अणुबदी होदि' सो बिदिओ ॥ ३३४ ॥ अत्यन्त मांसप्रेमी था । उसने राजाके उद्यानमें एकान्त देखकर राजाके मेढेको मार डाला और उसे खा गया । मेढ़ेके मारनेका समाचार सुनकर राजा बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने उसके मारनेवालेकी खोज की । उद्यानके मालीने, जो उस समय वृक्षपर चढ़ा हुआ था, मेढेको मारते हुए राजपुत्रको देख लिया था। रात्रिके समय उसने यह बात अपनी स्त्रीसे कही । राजाके गुप्तचरने सुनकर राजाको उसकी सूचना दे दी । सुबह होनेपर माली बुलाया गया। उसने सच सच कह दिया । 'मेरी आज्ञाको मेरा पुत्र ही तोड़ता है' यह जानकर राजा बड़ा रुष्ट हुआ और कोतवालको आज्ञा दी कि राजपुत्रके नौ टुकड़े कर डालो। कोतवाल कुमारको वधस्थान पर ले गया और चाण्डालको बुलानेके लिये आदमी गया । आदमीको आता हुआ देखकर चाण्डालने अपनी स्त्री से कहा-'प्रिये, उससे कह देना कि चाण्डाल दूसरे गांव गया है । और इतना कह कर घरके कोनेमें छिप गया । कोतवालके आदमीके आवाज देनेपर चाण्डालनीने उससे कह दिया कि वह तो दूसरे गाँव गया है । यह सुनकर वह आदमी बोला-'वह बड़ा अभागा है ।आज राजपुत्रका वध होगा। उसके मारनेसे उसे बहुतसे वस्त्राभूषण मिलते ।' यह सुनकर धनके लोभसे चण्डालनीने हाथके संकेतसे चण्डालको बता दिया, किन्तु मुखसे यही कहती रही कि वह तो गांव गया है । आदमीने घरमें घुसकर चण्डालको पकड़ लिया और वधस्थानपर लेजाकर उससे कुमारको मारनेके लिये कहा । चाण्डालने उत्तर दिया-आज चतुर्दशीके दिन मैं जीवघात नहीं करता । तब कोतवाल उसे राजाके पास लेगया और राजासे कहा-'देव, यह राजकुमारको नहीं मारता ।' चाण्डाल बोला-'खामिन् ! मुझे एक बार सांपने डस लिया और मैं मर गया । लोगोंने मुझे स्मशानमें ले जाकर रख दिया । वहाँ सर्वौषधि ऋद्धिके धारी मुनिके शरीरसे लगकर बहनेवाली वायुसे मैं पुनः जीवित होगया । मैंने उनके पास चतुर्दशीके दिन जीवहिंसा न करनेका व्रत ले लिया । अतः आज मैं राजकुमारको नहीं मारूँगा । देव जो उचित समझें करें । अस्पृश्य चाण्डालके व्रतकी बात सोचकर राजा बहुत रुष्ट हुआ । और उसने दोनोंको बन्धवाकर तालाबमें फिंकवा दिया। प्राण जानेपर भी अहिंसा व्रतको न छोड़नेवाले चाण्डालपर प्रसन्न होकर जलदेवताने उसकी पूजा की । जब राजा महाबलने यह सुना तो देवताके भयसे उसने भी चाण्डालकी पूजा की और उसे अपने सिंहासनपर बैठाकर अस्पृश्यसे स्पृश्य बना दिया ॥ ३३२ ॥ आगे दो १ म यदि, ग हविदि, ल हवदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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