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________________ -१६६] १०. लोकानुप्रेक्षा १०५ उत्कृष्टायरर्धसागरोपमम् । तत् द्वितीयपटले जघन्यमा एवं त्रिषष्टिपटलेषु ज्ञेयम्॥भवनवासिनां तु 'स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्धहीनमिता' । असुरकुमाराणां उत्कृष्टा स्थितिः सागरोपमा एका १। नागानां पल्यत्रयमुत्कृष्टायुः ३ । सुपर्णानां सार्धपल्यद्वयमुत्कृष्टायुः। द्वीपानामुत्कृष्टायुः पल्यद्वयं २ । विद्युत्कुमारादीनां षट्प्रकाराणां प्रत्येक साधं पल्योपममेकम् ३. उत्कृष्टा स्थितिर्भवति । भवनवासिदेवानां दशसहस्रवर्षाणि १०००० जघन्या स्थितिर्भवति । परा पल्योपममधिकम् व्यन्तराणाम् उत्कृष्टम् आयुः पल्योपमैकं किंचिदधिकं भवति । जघन्य तु दशवर्षसहस्राणामायुः । ज्योतिष्काणां परमायुः पल्योपममेकं किंचिदधिकं भवति । जघन्यं तु तदष्टभागोडपरा पल्योपमस्याष्टमो भागः।। नारकाणां तु तेष्वेक १ त्रि ३ सप्त ७ दश १. सप्तदश १७ द्वाविंशति २२ त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्त्वानां परा स्थितिः । रत्नप्रभायां नारकाणां उत्कृष्टायुः सागरः १।शर्कराप्रभायां नारकाणां त्रिसागरोपमा परा स्थितिः ३ । वालुकायां नारकाणामुत्कृष्टायुः सागराः ७ । पङ्कप्रभायां नारकाणां दशसागरोत्कृष्टायुष्कम् १० । धूमप्रभायां नारकाणां सप्तदश सागराः १७ उत्कृष्टायुः । तमःप्रभायां नारकाणां द्वाविंशतिसागरोपमा परा स्थितिः २२ । महातमःप्रभायां नारकाणां त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमोत्कृष्टायुः ३३॥ विस्तरेण तु रत्नप्रभायाः प्रथमनरकपटले नवतिवर्षसहस्राणि परा स्थितिर्भवति । जघन्यं तु दशवर्षसहस्राण्यायुर्जेयम् । यदायुः प्रथमनरकपटले वा उत्कृष्टं तदायुः द्वितीयनरकपटले वा जघन्यायुः ॥ इत्यायुःकर्मवर्णना पूर्णा जाता च ॥ १६५॥ अथैकेन्द्रियादिजीवानां शरीरावगाहमुत्कृष्टजघन्यं गाथादशकेनाह अंगुल-असंख-भागो एयक्ख-चउक्ख-देह-परिमाणं । जोयणे-सहस्समहियं पउमं उक्कुस्सयं जाण ॥१६६ ॥ पटलमें जघन्य आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है । सौधर्म और ऐशान खर्गमें उत्कृष्ट आयु दो सागर है । वही एक समय अधिक सनत्कुमार और माहेन्द्र वर्गके देवोंकी जघन्य आयु है । इसी तरह ब्रह्म ब्रह्मोत्तर आदि वर्गों में भी जानना चाहिये । अर्थात् जो नीचेके युगलमें उत्कृष्ट स्थिति है वही एक समय अधिक स्थिति उसके ऊपरके युगलमें जघन्य स्थिति है । तथा सौधर्म और ऐशान खर्गके प्रथम पटलमें उत्कृष्ट आयु आधा सागर है वही उसके दूसरे पटलमें जघन्य आयु है। इसी तरह तरेसठ पटलोंमें जानना चाहिये । भवनवासियोंमें असुरकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागर है, नागकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है, सुपर्णकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु दाई पल्य है, द्वीपकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु दो पल्य है, शेष विद्युत्कुमार आदि छः प्रकारके भवनवासियोंकी उत्कृष्ट आयु डेढ़ डेढ़ पल्य है । तथा भवनवासी देवोंकी जघन्य आयु दस हजार वर्ष है । व्यन्तरोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है । जघन्य आयु दस हजार वर्ष है । ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट आयु भी एक पल्यसे कुछ अधिक है । तथा जघन्य आयु एक पल्यका आठवां भाग है । रत्नप्रभा नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागर है । शर्कराप्रभामें उत्कृष्ट आयु तीन सागर है । वालुकाप्रभामें उत्कृष्ट आयु सात सागर है । पंकप्रभामें उत्कृष्ट आयु दस सागर है । धूमप्रभामें उत्कृष्ट आयु सतरह सागर है । तमःप्रभामें उत्कृष्ट आयु बाईस सागर है । और महातमःप्रभामें उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर है । विस्तारसे रत्नप्रभाके प्रथम नरक पटलमें नौवे हजार वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है और जघन्य आयु दस हजार वर्ष है, तथा प्रथम नरकपटलमें जो उत्कृष्ट आयु है वह दूसरे नरकपटलमें जघन्य है। इस प्रकार आयुका वर्णन पूर्ण हुआ ॥ १६५॥ अब एकेन्द्रिय आदि जीवोंके शरीरकी जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना दस गाथाओंसे कहते हैं । अर्थ-एकेन्द्रिय चतुष्कके शरीरकी अवगाहनाका प्रमाण अंगुलके असं १ ल एगक्ख २ ब जोइण । कात्तिके० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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