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________________ ७ -१५१] १०. लोकानुप्रेक्षा [छाया-संमूर्छनाः खलु मनुजाः श्रेण्यसंख्यातभागमात्राः खलु । गर्भजम नुजाः सर्वे संख्याताः भवन्ति नियमेन ॥] सन्मूर्छना मनुष्या लब्ध्यपर्याप्तका एव । सेढियसंखिजभागमित्ता श्रेणेरसंख्यातेकभागमात्राः । भवन्ति । नियमतः सर्वे गर्भजमनुष्याः संख्यातमात्राः स्युः । तथा गोम्मटसारे मनुष्यगतिजीवसंख्यां गाथात्रयेणोक्तं च । “सेढी सूई. अंगुलआदिमतदियपदभाजिदेगूणा । सामण्णमणुसरासी पंचमकदिधणसमा पुण्णा ॥" जगच्छ्रेणि सूच्यङ्गुलस्य प्रथममूल तृतीयमूलाभ्यां भक्त्वा तल्लब्धे एकरूपेऽपनीते स राशिः सामान्यमनुष्यराशिः स्यात् । । द्विरूपवर्गधारासंबन्धि. पञ्चमवर्गस्य बादालसंज्ञस्य घनप्रमाणाः पर्याप्तमनुध्या भवन्ति । ४२ = । ४२ =| ४२ = । अस्मिन् राशौ परस्पर गुणिते यल्लब्धं तं राशिमक्षरसंज्ञयाङ्कक्रमेण कथयति । “तललीनमधुगविमलं धूमसिलागाविचोरभयमेरू । तटहरिखझसा होंति हु माणुसपञ्जत्तसंखका ॥” सप्तचतुर्वारकोटिद्वानवतिलक्षाष्टाविंशतिसहस्रैकशतद्वाषष्टित्रिवारकोट्येकपञ्चाशलक्षद्वाचत्वारिंशत्सहस्रषट्शतत्रिचत्वारिंशद्धिवारकोटिसप्तत्रिंशल्लकोनषष्टिसहस्रत्रिशतचतुःपञ्चाशत्कोट्येकानचत्वारिंशल्लक्षपंचाशत्सहस्रत्रिशतषत्रिंशत्प्रमिता पर्याप्तमनुष्याणां संख्या भवति । ७,९२२८१६२,५१४२६४३,३७५९३५४ ३९५०३३६ । 'पजत्तमणुस्साणं तिचउत्थो माणुसीण परिमाणं । सामण्णा पुण्णूणा मणुव अपजत्तगा होति । पर्याप्ता मनुष्यराशेः त्रिचतुर्भागो मानुषीणां द्रव्यस्त्रीणां परिमाणं भवति। ४२ = ४२ = ४२ = है। सामान्यमनुष्यराशी पर्याप्तमनुष्यराशावपनीते अपर्याप्तमनुष्यप्रमाणं भवति 11-9। इति संख्या गता । १५१॥ अथ सान्तरमार्गणामाह असंख्यातवें भाग मात्र हैं। और गर्भज मनुष्य नियमसे संख्यातही हैं। भावार्थ-सम्मर्छन मनुष्य लब्ध्यपर्याप्तक ही होते हैं । उनका प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है । तथा सब गर्भज मनुष्य नियमसे संख्यात ही होते हैं । गोम्मटसारमें भी तीन गाथाओंके द्वारा मनुष्य गतिमें जीवोंकी संख्या इस प्रकार बतलाई है-सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूल और तृतीय वर्गमूलसे जगत् श्रेणिमें भाग दो । जो लब्ध आवे उसमें एक कमकर लो। उतना तो सामान्य मनुष्यराशिका प्रमाण है । तथा द्विरूप वर्गधारा सम्बन्धी पाँचवें वर्गका, जिसे बादाल कहते हैं, धन प्रमाण पर्याप्त मनुष्योंका प्रमाण हैं । आशय यह है कि दोसे लेकर जो वर्गकी धारा चलती है उसे द्विरूपवर्गधारा कहते हैं । जैसे २ ४२ = ४ यह प्रथम वर्ग है । ४ ४ ४ = १६ यह दूसरा वर्ग है । १६ ४ १६ = २५६ यह तीसरा वर्ग है । २५६४ २५६ = ६५५३६ यह चौथा वर्ग है । ६५५३६ ४६५५३६ = ४२९५२६७२९६ यह पांचवा वर्ग है । इसके शुरुके ४२ के अंकके ऊपरसे इस संख्याका संक्षिप्त नाम बादाल है। इस बादालको तीन वार परस्परमें गुणा करनेसे (४२९५२६७२९६४४२९५२६७२९६४४२९५२६७२९६) जो राशि पैदा होती है गोम्मटसारमें अक्षरोंके संकेतके द्वारा एक गाथामें उस राशिको इसप्रकार बतलाया है 'तललीनमधुगविमलं धूमसिलागाविचोरभयमेरू । तटहरिखझसा होंति हु माणुसपजत्तसंखंका।' ॥ २ ॥ इसका अर्थ समझनेके लिये अक्षरोंके द्वारा अंकोंको कहनेकी विधि समझ लेनी चाहिये जो इस प्रकार है-ककारसे लेकर प्रकार तकके नौ अक्षरोंसे एक से लेकर नौ तकके अंक लेना चाहिये । इसी तरह टकारसे लेकर धकार तकके नौ अक्षरोंसे एक, दो, तीन आदि अंक लेना चाहिये । इसी तरह पकारसे लेकर मकार तकके अक्षरोंसे एक दो आदि पांच अंक तक लेना चाहिये । इसी तरह यकारसे लेकर हकार तकके आठ अक्षरोंसे क्रमशः एकसे लेकर आठ अंक तक लेना चाहिये । जहाँ कोई खर हो, या नकार हो अथवा नकार लिखा हो तो वहाँ शून्य लेना । सो यहाँ इस विधिसे अक्षरोंके द्वारा अंक कहे हैं । उन अंकोंको बाई ओरसे लिखनेसे वे इस प्रकार होते हैं-७,९२२८१६२,५१४२६४३,३७५९३५४,३९५०३३६ । सो सात कोड़ाकोड़ी कोड़ाकोड़ी, बानवे लाख अठाईस हजार एकसौ बासठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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