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________________ १०. लोकानुप्रेक्षा पानायुरूपाः दश प्राणाः १० भवन्ति । वीर्यान्तरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमजनिताः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियमनोबलप्राणाः ६ भवन्ति । शरीरनामकर्मोदये सति कायबलप्राणाः आनप्राणश्च भवन्ति २ । शरीरनामकर्मोदये स्वरनामकर्मोदये च वचोबलप्राणो भवति १। आयुःकर्मोदये आयुःप्राणो भवति १। एवं प्राणानामुत्पत्तिसामग्री सूचिता ॥ १४० ॥ अथ द्विविधानामपर्याप्तानां प्राणसंख्यां विभजति दुविहाणमपुण्णाणं इगि-वि-ति-चउरक्ख-अंतिम-दुगाणं । तिय चउ पण छह सत्त य कमेण पाणा मुणेयबा ॥ १४१॥ [छाया-द्विविधानाम् अपूर्णानाम् एकद्वित्रिचतुरक्षान्तिमद्विकानाम् । त्रयः चत्वारः पञ्च षट् सप्त च क्रमेण प्राणाः ज्ञातव्याः ॥] द्विविधानामपूर्णानां निर्वृत्यपर्याप्तानां लब्ध्यपर्याप्तानां च। इगि इत्यादि एकद्वित्रिचतुरक्षान्तिमद्विकानाम् एकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियासंज्ञिसंज्ञिपञ्चेन्द्रियाणां क्रमेण प्राणाः मन्तव्याः ज्ञातव्याः । कतिकतीत्यादि त्रयश्चत्वारः पञ्च षट् सप्त च ज्ञातव्याः। तथा हि नित्यपर्याप्तकलब्ध्यपर्याप्तकानामेकेन्द्रियजीवानां स्पर्शनेन्द्रियकायबलायुःप्राणास्त्रयो भवन्ति ३, न तु निश्वासोच्छ्वासः । निर्वृत्यलब्ध्यपर्याप्तानां द्वीन्द्रियजीवानां स्पर्शनरसनेन्द्रियकायबलायुःप्राणाश्चत्वारो ४ विद्यन्ते, न तु भाषोच्छ्वासौ । निर्वृत्यलब्ध्यपर्याप्तानां त्रीन्द्रियजीवानां स्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियकायबलायुःप्राणाः पञ्च ५ सन्ति, न तु भाषोच्छ्वासी । निवृत्यलब्ध्यपर्याप्तानां चतुरिन्द्रियजीवाना स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुरिन्द्रियकायबलायुःप्राणाः षट् ६ स्युः, न तु निश्वासभाषाप्राणौ। निर्वृत्यलब्ध्यपर्याप्तानाम् असंज्ञिजीवानां प्राणोंमेंसे स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पांच इन्द्रियां और मनोबल प्राण वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे होते हैं। शरीर नाम कर्मका उदय होनेपर कायबल प्राण और श्वासोच्छ्रास प्राण होते हैं । शरीर नाम कर्म और स्वरनामकर्मका उदय होनेपर वचनबल प्राण होता है। और आयुकर्मका उदय होनेपर आयुप्राण होता है। इस तरह प्राणोंकी उत्पत्तिकी सामग्री बतलाई है ॥ १४० ॥ अब दोनों प्रकारके अपर्याप्तकोंके प्राणोंकी संख्या कहते हैं । अर्थदोनों प्रकारके अपर्याप्त एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके क्रमसे तीन, पांच, छ: और सात प्राण जानने चाहिये । भावार्थ-दोनों प्रकारके अपर्याप्त अर्थात् निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके क्रमसे तीन, चार, पांच, छ: और सात प्राण होते हैं अर्थात् निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु ये तीन प्राण होते हैं, श्वासोच्छास प्राण नहीं होता । निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त दो इन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन और रसना इन्द्रिय, कायबल, आयु, ये चार प्राण होते हैं, वचनबल और श्वासोच्छास प्राण नहीं होते । निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त तेइन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना और प्राण इन्द्रिय, कायबल और आयु ये पांच प्राण होते हैं, वचनबल और श्वासोच्छास प्राण नहीं होते । निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त चौइन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रिय, कायबल और आयु ये छ: प्राण होते हैं, वचनबल और श्वासोच्छ्रास प्राण नहीं होते । निर्वृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त असंज्ञी पश्चन्द्रिय तथा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रिय, कायबल और आयु ये सात प्राण होते हैं, श्वासोच्छ्रास वचनबल और मनोबल प्राण नहीं होते। शङ्का-पर्याप्ति और प्राणमें क्या भेद है ? समाधान-आहारवर्गणा, भाषावर्गणा और मनोवर्गणाके परमाणुओंको आहार, शरीर, १ग इग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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