SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णवजलहरसरेण नये मेघ के समान (गम्भीर) स्वरवाले सुणि सुनो [[(णव) वि-(जलहर)-(सर) 3/1] वि] (सुण) विधि 2/1 सक (सुंदरी) 8/1 (पभण) भूकृ 1/1 (मुणिवर) 3/1 हे उत्तम स्त्री सुंदर पभणिउ मुणिवरेण कहा गया मुनिवर के द्वारा 3. उत्तुंगें भरभारियधरेण ऊँचे भारी भार धारण करनेवाले होसइ होगा (उत्तुंग) 3/1 वि [(भर)-(भारिय) वि-(धर) 3/1 वि] (हो) भवि 3/1 अक (सुधीर) 1/1 वि (सुअ) 1/1 (गिरिवर) 3/1 सुधीरु अत्यधिक धैर्यवान सुउ गिरिवरेण गिरिवर (पर्वत) से कुसुमरयसुरहिकयमहुअरेण fost abus.ulude [(कुसुमरय)-(सुरहि)-(कय) भूक अनि-(महुअर) 3/1] मकरन्द (फूलों की रज) की सुगन्ध से आकर्षित किये गये भंवर सहित दानी चाइड लच्छीहरु (चाइअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(लच्छी )-(हर) 1/1 वि] (तरुवर) 3/1 लक्ष्मीवान तरुवरेण तरुवर से सुररमणीकीलामणहरेण [(सुर)-(रमणी)-(कीला)-(मणहर) 3/1 वि] (सुर)-(वंदणीअ) 1/1 वि [(वर) वि-(सुर)-(हर) 3/1] देवताओं की रमणियों की क्रीड़ा से सुन्दर देवताओं द्वारा वन्दनीय इन्द्र के घर से सुखंदणीउ वरसुरहरेण जललहरीचुंबियअंबरेण [[(जल)-(लहरी)-(चुंबिय) भूक -(अंबर) 3/1] वि] [(गुण)- (गण)-(गहीर) 1/1] गुणगणगहीरु जल-तरंगें आकाश से छू ली गई गुणों का समूह (तथा) गंभीर समुद्र से रयणायरेण (रयणायर) 3/1 287 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy