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________________ 5 1-14 भाव __ "भावो णाम दव्व परिणामो” द्रव्य के परिणाम को भाव कहते हैं। जीव द्रव्य में पाँच मुख्य भाव पाये जाते हैं। औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक। ये पाँचों भाव जीव के स्वतत्त्व और असाधारण भाव कहे गये हैं। कारण है कि ये भाव जीव के अलावा अन्य द्रव्यों में नहीं देखे जाते हैं। इन भावों के भेद -प्रभेद तथा गुणस्थानों में इनका सद्भाव निम्न प्रकार से है - क्र.भाव गुणस्थान क्र.भाव गुणस्थान 1. औपशमिक भाव 2 भेद 27. क्षायो. सम्यक्त्व 4-12 1. औपशमिक सम्यक्त्व 4-11 28. क्षायो. चारित्र (स.चा.) 6-10 2. औपशमिक चारित्र 29. संयमासंयम 2. क्षायिक भाव 9 भेद 4. औदयिक भाव 21 भेद 3. क्षायिक ज्ञान 13-14 30. नरकगति 1-4 4. क्षायिक दर्शन 13-14 31. तिर्यंचगति 1-5 5. क्षायिक दान 13-14_32. मनुष्यगति 6. क्षायिक लाभ 13-14 33. देवगति 1-4 7. क्षायिक भोग 13-14 34. क्रोध कषाय 1-9 8. क्षायिक उपभोग 13-14 35. मानकषाय 1-9 9. क्षायिक वीर्य 13-14 36. माया कषाय 1-9 10. क्षायिक सम्यक्त्व 4-14 37. लोभ कषाय 1-10 11. क्षायिक चारित्र 12-14 38. स्त्रीवेद 3. क्षायोपशमिक भाव 18 भेद 39. पुरुष वेद 1-9 12. मति ज्ञान 4-12 40. नपुंसक वेद 1-9 13. श्रुत ज्ञान 4-12 41. मिथ्यात्व 14. अवधि ज्ञान 4-12 42. अज्ञान 1-12 15. मनःपर्यय ज्ञान 4-12 43 असंयम 1-4 16. कुमति ज्ञान 1-2 44. असिद्धत्व 1-14 17. कुश्रुत ज्ञान 1-2 45. कृष्णलेश्या 1-4 18. कुअवधि ज्ञान 1- 2 46. नीललेश्या 1-4 19. चक्षुदर्शन 1-12 47. कापोत लेश्या 1-4 20. अचक्षु दर्शन 1-12 48. पीतलेश्या 1-7 21. अवधि दर्शन • 4-12 49. पद्म लेश्या 1-7 22 क्षायो. दान 1-12 50. शुक्ल लेश्या 1-13 23. क्षायो. लाभ 1-12 5. पारिणामिक भाव 3 भेद 24. क्षायो. भोग 1-12 51. जीवत्व 1-14 25. क्षायो. उपभोग 1-12 52. भव्यत्व 1-14 26. क्षायो. वीर्य 1-12 53. अभव्यत्व 1-9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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