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________________ स्तुतिषिया - अथे-हे प्राणिलोचन ! प्रभो! यह आश्चर्यकी बात है कि श्राप पृथिवीके-पृथिवीगत प्राणियोंके (पक्षमें-ज्ञानावरणादि कर्मपुद्गलोंके )-घातक हो कर भी पालक हैं-रक्षक हैं-और शीतल-शीतगुण विशिष्ट-ठण्डे (पक्षमें-शीतलनाथ दशम तीर्थकर) होकर भी पावक-अग्नि (पक्षमें-पवित्र करने वाले) हैं। ___ भावार्थ-इस श्लोकमें विरोधाभास अलंकार है अतः पहले इसमें विरोध मालूम पड़ता है परन्तु बाद में उसका परिहार होजाता है। जहां श्लेष इसका मूल होता है वहां विशेष चमत्कार उत्पन्न हो जाता है। यहां 'क्षिति' 'शीतल' और 'पावक' शब्द श्लिष्ट हैं । जो पृथिवीका घातक होगा वह पालक कैसे होगा ? यह विरोध है परन्तु परिहार पक्षमें क्षितिका अर्थ कर्मरूप पार्थिव-पुद्गलपरमाणु-लेनेसे विरोध दूर हो जाता है। इसी तरह जो शीतल-ठण्डा होगा वह पावक-अग्नि कैसे होगा ? यह विरोध है परन्तु शीतलका अर्थ दशमतीर्थकर और पावकका अर्थ पवित्र करने वाले लेनेसे सब विरोध दूर हो जाता है । अथवा हे भगवन् ! 'आप घातक होकर भी प्रपालक हैं और शीतल होकर भी अग्नि हैं। यह 'विरोध' क्षितेरेव-पृथिवीवत् जड़ मनुष्योंको ही हो सकता है न तु विदुषाम्विद्वानोंको नहीं ॥४१॥ (मुरजः) काममेत्य जगत्सारं जनाः स्नात महोनिधिम् । विमलात्यन्तगम्भीरं जिनामृतमहोदधिम् ।।४२॥ कामेति-काममत्यर्थ कमनीयं वा । एत्य गत्वा । जगत्सारं त्रिलोकसारम् । जनाः लोकाः । स्नात अज्ञानमलप्रक्षालनं कुरुध्वम् । महसां तेजसां' निधिः अवस्थानं यः सः श्रतस्तं महोनिधिम् । विमलः १ 'महस्तूत्सवतेजसोः' इति विश्वलोचनः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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