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________________ ४२ मेरुसुन्दरगणि-विरचित इसिइ सोरठदेस-माहि आवतां सत्यभामाइं बि पुत्र प्रसव्या, भानु अनइ भामर एहवइ नामि । पछइ कृष्णि तिहां त्रिण्णि उपवास करी सुस्थित लवणाधिप आराधिउ । पछइ प्रत्यक्ष हुइ, पंचयज्ञ नामा शंख देई कृष्ण-प्रति कहइ, 'स्यूं करउं ?' पछइ कृष्णि कहिउं, 'नगरनइ ठाम आपि ।' पछइ संतुष्ट 'हुंतइ नवबारही नगरी करी दीधी । अढार हाथ ऊंचउं गढ, बार हाथ पहुलड, नव हाथ उंडी पाखती खाई, एहवउ खाई-सहित गढ करी दीधउ । माहि अनेक आवास करी दीधा । पछइ वासुदेवनइ काजि अढार भूमिकानु आवास करी दीधउ । बीजां सर्व घर एक रात्रि-माहि धनदि कीधां । पछइ तिहां द्वारवतीई कृष्णनइ राज्याभिषेक कीधउ । इसिइ श्री नेमिकुमार त्रिहुं ज्ञाने सहित रामति रमिवा लागउ । यादव सर्व नवनवी रामति खेलावई । इम बाल्यावस्था अतिक्रमि श्री नेमिकुमार यौवनावस्थाई आव्या । वज्रऋषभ-नाराच-संहनन-सहित दस धनुष ऊंचा एहवाइ नेमिकुमार विषय-थकी विमुख हया । - इसिई वणिजाग रत्नकंबल लेई आव्या । पणि थोडउ लाभ देखी राजगृह नगरि गया । तिहां जीवयशानइ देखाडयां । मूल करतां कहिउ, 'अधलाख कांबलनउं मूल ।' तिवारई ते वणिआरा कहई, 'अम्हनइं द्वारवती नगरीई लाख द्रव्य देता हूंता । पणि अम्हे न वेच्यां । तिवारइ जीवयशा पूछइ, 'ते द्वारावती नगरी किहां छइ तिवारई वणिजारे कहिउं, 'धनद-यक्षनी स्थापी द्वारावती धनधान्ये करी भरित-पूरित छइ, अनइ राजा कृष्ण राज करइ छइ ।' ए वात सांभली भूताधिष्ठित पुरुषनी परिइ रोती हूंती पिता-कन्ह लि जई कहिवा लागी जउ, 'माहरउ वडरी अजी जीवह छह ।' ए वात सांभली त्रिखंड-भोक्ता जरासिधु कहिवा लागउ. 'हे वत्सि ! सस्तो था माहरउं कीघउं जोइ ।' पछइ प्रयाण-भंभा देवरावी, सहदेवादिक पुत्रना सई, दुर्योधन-शिशुपालादिक राजाने सहस्रे वारीतउ, अपशुकने निवारीतउ हूंतउ, जरासिंधु पश्चिम दिसिई चालिउ । तिसिई नारद-ऋषी रणांगणनइ कुतिगियाल हूंतउ जरासिंधुनइ कहइ, 'तूं कृष्ण साथि पुहची नही सकइ ।' इमरीस ऊपजावी। पछइ कृष्ण-समीपि आवी कहिउं, 'जरासिंधु आवइ छइ, तूं सज्ज था।' ए वात सांभली नारायण(? णि) हूंकारउ मूंकी पडहउ वजाविउं । पछइ दसइ दशारनां कटक सज्ज हयां । अऊठ कोडि पुत्र सन्नाह पहिरवा लागा । तिसिइ उग्रसेन पणि आपणा कटक मेली आविउ । महासेन सांतन राजादिकनां, पांचइ पांडवनी पत्नीना सुसरानों, एतला सर्व कटक आवी मिल्यां। भले सुकने, अनेक वाजित्र वाजते, कृष्ण रथि बइसी चालिउ । क्रोष्टिक-नैमित्तिकि महत दीधउं । इम कृष्ण सैन्य मेली जेतलइ सीमइ आवइ, तेतलइ जरासिंधु सामहु आवी चक्रव्यूहपणइ आपणउं कटक राखिउं । सहस्र-आरा एहवउं चक्र, तीणइ आकारि एकणि-एकणि आरइ सहस्र-सहस्र राजा, बि सहस्त्र रथ, सउ हाथी, पांच सहस्र अश्व, सोल सहस्त्र पायक, पांच सहस्त्र राजा चक्रनइ मुखि । कौरव गांधार राजानां कटक केडिइं, आपणपई पुंठिइ रहिउ । वात सांभली कृष्ण पणि गुरुडम्यूहिई उतरिउ । तिहां पंचास-लाख कुमर गुरुडव्यहनई मखि रहिया । गोविंद-बलिभद्र माथइ रह्या । कटक सर्व बिहु पासे रहियां । इसिईए बात अवधिनई बलिइं इंद्रिई जाणी, आपण रथ अगइ मातुल सारथी, आपणउ सन्नाह अनइ सर्व शस्त्र नेमिकुमार-भणी मोकल्यां । १. K संतुष्ट हूइ हुंतइ Pu. L संतुष्ट वर्तमान. २. Pu. दशोदशनां कटक. ३. K आ प्रमाणे पाठ छे-पांच पांडव जिमणई पासई रहिया । बीजा डाबई पासई रहिया । कटक...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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