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________________ शीलोपदेशमाला- बालावबोध पछइ मातानई जे जे डोहला ऊपजई ते ते सर्व इंद्रादिक देव पूरवइ । इम करतां सार्द्धष्ट [ दिन नव मसवाडा हुया । इसिइ श्रावण सुदि पांचमी दिन चित्रा नक्षत्र - माहि स्वामीनउ जन्म हूउ । तिसिहं इंद्रनई आसनकंप हूउ । पछइ इंद्रि स्वामीनउ जन्म जाणी, अवस्वापिनी विद्या देई, पांचे रूपे करो परमेश्वरनइ मेरु-पर्वति लेई आविउ । तिहां अति-पांडु कंबलशिला - ऊपरि योजन- मुख कलसे करी परमेसरनइ जन्म महोत्सव करी, पूजी अर्ची, अत्रस्वापिनी विद्या अपहरी, स्वामी माता- समीपि मूक्या । देवताए सुवर्ण-रत्ननी वृष्टि कीधी । पछइ परमे. स्वरनई अंगूठइ अमृत संचारिउँ । इंद्र परमेश्वरनई वांदी, खमावी नंदीश्वरि पहुतउ । इसिइ प्रभातनउ समउ हूउ । सूर्य ऊगिउ । जउ माता जागई, तु पुत्र सालंकार, साभरण देखइ । तेतलइ दासीइं राजानइ वधामणी दीधी । पछइ राजाई पुत्रनइ जन्मि पारितोषिक दान देई, सर्व बंदीवाण मूं कावी महा महोत्सव कीधउ । पछइ छट्ठि दिनि छट्ठी कीधी । बारमइ दिहाडइ सर्व कुटुंब जिमाडी, अरिष्ट विलय गयां गर्भनइ प्रमाणि ते-भणी अरिष्टनेमि नाम दीघउं । पछइ पंच प्रकार धात्री पालीतउ मोटउ हूउ । स्वामी मनोरथने सए वाघिवा लागउ । इसिइ जरासिंधि दूत मोकली समुद्रविजय राजानइ कहाविउं जु, 'वैताढ्य - पर्वत - समीप सिंहपुर सिंहरथ राजानइ बांधि जि को आणिसिह तेहनइ हुं जीवयशा बेटी अनइ मनोवांछित नगर आपिसु ।' तेतलइ वसुदेव प्रणाम करी कहइ, 'ए काजु हूं करिसु ।' तिसिहं समुद्रविजयि कहिउं, 'ए अवसर ताहरउ नही ।' तु ही वसुदेव रहइ नही । पछइ वसुदेव चलाविउ । तिहां सिंहरथ पणि सामहु आविउ । युद्ध हुडं । वसुदेवनइ कंस सारथी हुई बइठउ छइ । तिसिइ वसुदेव सिंहरथनउं कटक भांजी, सिंहरथराय पाडी, कंस पाहइ बंधावी, आपणइ नगरि पाछउ आविउ । तेतलइ समुद्रविजयह वसुदेवनइ एकांति बइसारीनइ कहिउं जउ, 'क्रोष्टिक - नैमित्तिकि इसिउं कहिउं छइ - जे जीवयशानउं पाणिग्रहण करिसिई, तेहना कुलनड क्षय होसिहं । हिवइ तूं ते उपाय चींतवि जे कंसनइ माथइ ए पवाडउ घाती, आप सुखी था । पछइ वसुदेव जरासिंधु - कन्हइ जई कंसनइ जीवयशा देवरावी, मथुरानगरी पणि दधी । इत्यादि बहु वक्तव्य छइ । नारायणि जिवारइ कंस हणिउ, तिवारइ जीवयशा जलांजलि न दिइ । पछइ जरासिंधइ ए वात सांभली दूत मोकलिउ । तीणइ ते दूत अवगणी यादवे क्रोष्टिक पूछिउ, तिवारइ कहिवा लागउ, 'त्रिखंड-भोक्ता कृष्ण-राम होसिहं । पणि पश्चिम- दिसिहं श्री विंध्यगिरि-सन्मुख समुद्र छड़ तिहां जई रहउ । नारायणनी प्रिया सत्यभामा बि पुत्र प्रसवसिहं । तिहां तुम्हे नगरी बसाविज्यो । ' छह सर्व यादव सोरीपुर हूंता नीकल्या सात कुल कोडि साथई, अनइ उग्रसेन इग्यार कुल sts साथि नीकली, पंथ अवगाही, विंध्य पर्वत- दूकडा जेतलइ आव्या, तेतलइ काल-महाकालप्रमुख जरासिंधुना पांच सह पुत्र वाहरइ आव्या । तिसिहं यादवकुलनी अधिष्टायकाई त्रिणि चिहि रची डोकरीनइ रूपिदं रोवा बइठी । तिसिहं कालि-महाकालि पूछिउं, 'तुं कांइ रोइ ?' ते कहर, 'तुम्हारइ भए बीहता यादव सर्व आगि माहि पइठा । ए वात सांभली काल- महाकाल कुमर पणि आणि-माहि पइठा । ए वात यादवे सांभली । पछइ अइमुत्तउ पूछिउ जु, 'हिव किम कीजिसिइ ?' तिवारइ कहित्रा लागउ, 'जेहनइ कुलि एक महापुरुष हुइ, ते कुल गंजाइ नही । पछइ त्रिणि महापुरुष तुम्हारे कुले, तुम्हे कांह बीहउ ?" १. K नवमास अनइ सादा आठ दिन हुआ । ५ ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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