SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० शास्त्रवार्तासमुच्चय अनिवार्यतः एक साथ इसलिये रहते हैं कि यदि ऐसा न हो तो या तो यह वस्तु अपने रूप वाली भी नहीं होनी चाहिए या वह किसी दूसरी वस्तु के रूप वाली भी होनी चाहिए । परिकल्पितमेतच्चेन्न त्वित्थं तत्त्वतो न तत् । ततः क इह दोषश्चेन्न तु तद्भावसंगतिः ॥४९९।। कहा जा सकता है कि जहाँ एक वस्तु की सत्ता रहती है वहाँ किसी दूसरी वस्तु की असत्ता का रहना एक कल्पनासिद्ध बात है; लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि तब तो उक्त पहली वस्तु की सत्ता के स्थल में उक्त दूसरी वस्तु का रहना एक वस्तुस्थितिसिद्ध बात नहीं हुई । पूछा जा सकता है कि इसमें दोष क्या; इस पर हमारा उत्तर है कि तब तो उक्त पहली वस्तु की सत्ता के स्थल में उक्त दूसरी वस्तु की भी सत्ता का रहना एक वस्तुस्थितिसिद्ध बात होनी चाहिए । टिप्पणी-हरिभद्र का आशय यह है कि क के स्थितिस्थल में यदि 'ख का नास्तित्व' एक कल्पना सिद्ध बात है तो उस स्थल में 'ख का अस्तित्व' एक वस्तुस्थितिसिद्ध बात होनी चाहिए; और तब फिर हमें जहाँ क दीखता है वहाँ ख भी दीखना चाहिये । अनेकान्तत एवातः सम्यग् मानव्यवस्थितेः । स्याद्वादिनो नियोगेन युज्यते निश्चयः परः ॥५००॥ इस प्रकार क्योंकि अनेकान्तवाद का आश्रय लेने पर ही प्रमाणों का यथार्थ स्वरूप स्थिर हो पाता है यह बात युक्तिसंगत ठहरती है कि वस्तुओं का स्वरूपनिश्चय आदर्श रूप से तथा नियमत: कर पाना स्याद्वाद का सिद्धान्त मानने वाले व्यक्ति के लिए ही संभव है। टिप्पणी-'अनेकान्तवाद' शब्द का मोटा अर्थ है 'जगत् की प्रत्येक वस्तु को भावरूप तथा अभाव रूप दोनों मानने का सिद्धान्त' । एतेन सर्वमेवेति यदुक्तं तन्निराकृतम् । शिष्यव्युत्पत्तये किञ्चित्तथाऽप्यपरमुच्यते ॥५०१॥ इतना कहकर ही हमने उन सब आपत्तियों का खंडन कर दिया जो हमारे मत के विरुद्ध ऊपर उठाई गई थीं, लेकिन फिर भी शिष्यों को शिक्षित करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy