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________________ छठा स्तबक की नवीनता नहीं उत्पन्न की और फिर भी कहा जाए कि ख के कारण ने ख को ऐसे रूप में उत्पन्न किया कि वह क की उपस्थिति में ग को जन्म दे तो कहना यह हुआ कि ख के कारण का क के प्रति अनुचित पक्षपात है। एवं च व्यर्थमेवेह व्यतिरिक्तादिचिन्तनम् ।। नाश्यमाश्रित्य नाशस्य क्रियते यद् विचक्षणैः ॥४२४॥ ऐसी दशा में बुद्धिमानों का इस प्रश्न की चर्चा में पड़ना व्यर्थ ही है कि एक नष्ट होने वाली वस्तु तथा उसका नाश एक दूसरे से भिन्न हैं या अभिन्न आदि आदि । टिप्पणी-हरिभद्र का आशय यह है कि ठीक ऐसे ही प्रश्न एक उत्पन्न होने वाली वस्तु तथा उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में उठाए जा सकते हैं। किञ्च निर्हेतुके नाशे हिंसकत्वं न युज्यते । व्यापाद्यते सदा यस्मान्न कश्चित् केनचित् क्वचित् ॥४२५॥ दूसरे, यदि नाश का कोई कारण न माना जाए तब किसी को किसी की हिंसा करने वाला नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उस दशा में तो कोई किसी के द्वारा कभी मारा ही नहीं जाएगा । कारणत्वात् स सन्तानविशेषप्रभवस्य चेत् । हिंसकस्तन्न सन्तानसमुत्पत्तेरसंभवात् ॥४२६॥ कहा जा सकता है कि कोई व्यक्तिविशेष हिंसक इसलिए है कि वह एक विशिष्ट (अर्थात् मारे गए प्राणी से विसदृश) क्षण-परंपरा को जन्म देता है, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि प्रस्तुत वादी का मत स्वीकार करने पर तो क्षण-परंपराओं की उत्पत्ति ही संभव नहीं । टिप्पणी प्रस्तुत वादी के कहने का आशय यह है कि एक प्राणी का हत्यारा उस प्राणी के नाश का कारण नहीं अपितु उस प्राणी के स्थान पर (अधिक सही कहें तो उस प्राणी की जीवनक्षणपरंपरा के स्थान पर) एक नए प्राणी के जन्म का (अधिक सही कहें तो एक नए प्राणी की जीवनक्षणपरंपरा के जन्म का) कारण है; इस पर हरिभद्र का उत्तर है कि क्योंकि प्रस्तुत वादी क्षणपरंपरा सम्बन्धी अपनी कल्पना की सहायता से ही कार्यकारणभाव का स्वरूपनिरूपण कर पाता है और क्योंकि यह कल्पना अ-युक्तिसंगत है इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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