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________________ ७८ प्राचीनतम, प्राचीनतर एवं प्राचीन इस दृष्टि से आगमों का कालक्रम निम्नानुसार है: (१) आचाराङ्ग (७) निरयावलि (२) सूत्रकृताङ्ग (८) तित्थोगाली (३) व्याख्याप्रज्ञप्ति (९) स्थानाङ्ग (४) उत्तराध्ययन (१०) समवायाङ्ग (५) ज्ञाताधर्मकथा (११) आवश्यकनियुक्ति (६) राजप्रश्नीय (१२) कल्पसूत्र आगमों के अनुसार हम पार्व की कथा पर इस प्रकार दृष्टिपात कर सकते हैं : श्रीपार्श्व भगवान प्राणत कल्प से च्युत हुए थे । पार्श्व के पाँच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए थे (च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण) । वे विशुद्ध क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हए थे । उनका गोत्र काश्यप था । उनका जन्म वाराणसी में हआ था। उनके पिता राजा अश्वसेन एव माता वामादेवी थीं । वे राजकुमार थे । उनका वर्ण प्रियांग पम्प के समान था । उनका शरीर नौ हाथ ऊँचा था। उनकी माता जब गर्भवती थी तब उनके पाव ( पास में से) से सौप गुजरा था और गर्भ के प्रभाव से वे रात्रि के अंधेरे में भी सांप को देख सकी थी अतः उन्होंने पुत्रोत्पत्ति पर पुत्र का नाम पाश्व ही रखा था । .. तीस वर्ष की अवस्था में पाश्व" ने दीक्षा ली थी और सत्तर वर्ष तक दीक्षाव्रत का पालन किया था । पाश्व' पूर्वाह्न में दीक्षित हुए थे । उन्होंने प्रथम दीक्षा आश्रमपद नामक उद्यान में ली थी । पार्श्व ने प्रथम भिक्षा पकट नामक ग्राम में ली थी एव प्रथम भिक्षा देने वाले व्यक्ति का नाम 'धन्य' था। मगध और राजगृह नामक नगरों में प्रायः उनका विहार रहा था । अनार्यभूमि में भी पाश्व ने विचरण किया था । चैत्र मास की चतुर्थी, विशाखा नक्षत्र के योग में, आश्रमपद में ही पाश्व' को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था ।। पाश्व' जब पैदा हुए थे तब वे तीनज्ञानी थे और दीक्षित हुए उस समय वे चार प्रकार के ज्ञानों से युक्त थे (मति, श्रुति, अवधि एव मनःपर्यय)।. पार्श्व ने तीन दिन के उपवास के पश्चात् दीक्षा ग्रहण की थी। पाश्व' ने ३०० व्यक्तियों के साथ दीक्षा ग्रहण की थी और मृत्यु के समय उनके साथ तेतीस व्यक्ति थे । पाश्व' का स्वर्गवास सम्मेतशिखर पर हुआ था । उस समय वे १०० वष के थे। जिस समय भरतक्षेत्र में पाश्व तीर्थ कर थे उसी समय एरावत क्षेत्र में अग्निदत्त नामक तीर्थ कर विद्यमान थे । दोनों का निर्वाण विशाखा नक्षत्र में, पूर्व रात्रि के समय में एक ही समय में हुआ था । अरिष्टनेमि ( २२वें जन तीर्थकर ) और पाश्व' के मध्य ब्रह्म नामक चक्रवर्ति हुए थे। 1. आवश्यकनियुक्ति गा० २५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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