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________________ فی आगमों में पार्श्व : जैन साहित्य के विविध ग्रन्थों में पार्श्व भगवान के विषय में जो कथा अथवा तरसम्बन्धी सामग्री प्राप्त होती है वह कथा अथवा सामग्री उसी रूप में जैन धर्म के मूलस्रोत आगम-ग्रन्थों में अप्राप्य है । आगम के परवर्ती ग्रन्थ निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका एवं इनके आधार पर लिखे गये स्वतन्त्र ग्रन्थों की मोलिकता आगम जितनी नहीं है क्योंकि उनका आधार आगम होते हुए भी उनमें कई नयी बातों का समावेश किया गया है । वैदिक साहित्य में वेद और इस्लाम साहित्य में कुरान शरीफ की तरह जैन साहित्य में आगम का महत्त्वपूर्ण स्थान है । आगम क्या है ? तीर्थंकर के उपदेश को अर्थागम कहते है और उसको जो उनके साक्षात् शिष्य गणधरों के द्वारा ग्रन्थरूप में प्रस्तुत किया जाता है उसे सूत्रागम कहा जाता है । वीतराग तीर्थ कर के उपदेशरूप ये आगम प्रमाण है । विद्यमान जैन आगम २४वें जैन तीर्थंकर महावीर के उपदेश समझे जाते हैं लेकिन महावीर स्वयं कहते है कि उनके उपदेश पूर्व तीर्थकरों पर आधारित है । महावीर के पूर्व काल में पूर्व साहित्य विद्यमान था और भगवान पाश्व के सभी गणधार पूर्वो के ज्ञाता (= पूर्व घर ) थे । मूल आगमों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि वहाँ पाश्व से सम्बन्धित बहुत ही थोड़ी सामग्री प्राप्त होती है जो उनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्रदान कर सकती है । इसके अलावा वहाँ उनकी शिष्य-सम्पदा एवं शिष्या-सम्पदा के विषय में भी मात्र गिनती ही कराई गई है । महावीर के संघ में जुड़ने वाले छ: पाइर्वापस्यीयों का नाम से उल्लेख आया है पर किसी भी पार्वापत्यीय की जीवन कथा हम जानने में असमर्थ है । महावीर के संघ में जो पाश्र्वापत्यीय जुड़े नहीं थे ऐसे पाश्र्वापत्यीयों की संख्या ५१०, आगम में मिलती है । इनमें से ५०३ साधु थे । ये साधु पूर्वावस्था में कौन थे - इस विषय में आगम मौन है । मात्र दो साधुओं के गृहस्थजीवन के विषय में लिखा है । उनमें से एक चंपा का राजा था और दूसरा उसका मंत्री था । पाँच श्रमणोपासकों के जीवनवृत्त प्राप्त होते हैं उनमें से चार क्षत्रिय थे और एक शूद्र था । और दो क्षत्रिय वर्ण वाली श्रमणोपासिकाओं का उल्लेख मिलता है । इसके अतिरिक्त पार्श्व के पूर्वभवों का मूल आगमों में कहीं भी वर्णन नहीं आया है । ऐसा प्रतीत होता है कि परवर्ती साहित्य में पार्श्व के विषय में पूर्वपरम्परानुसार प्रचलित तस्वों को जोड़ कर, कथा को पूर्वभवों की कथा से मंडित कर मनोहारी बनाने की चेष्टा की गई है । वस्तुतः पार्श्व के विषय में जो भी सामग्री हम सत्य मान सकते हैं वह स्रोत है आगमों का और इसी क्रमानुसार हम पार्श्व की कथा का शनैः शनैः होता विकास दृष्टिगत करेंगे अर्थात् देखेंगे कि पार्श्व के विषय में प्राप्य समस्त सामग्री में से कौन सी सामग्री मूल आगमों में है और कौन सी सामग्री बाद में टीकाकारों द्वारा जोड़ दी गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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