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________________ ५१९ २२८१ ] नबमभवि वसुदेववृत्तु [२२७८] तत्थ भदिलतिलय-अभिहाणि नयरम्मि अ-मिणिय-दविणु नागदत्त-नामोत्थि वणि-वरु । तसु उत्तिम-कंति-धर विणय-सील गुण-मणिहिं कुल-हरु ॥ जिणवर-धम्मुल्लसिय ससि-निम्मल-कित्ति-कलाव । सुलसा नाम अहेसि पिय परहुय-महुरालाव ॥ [२२७९] वाल-कालि वि तीए पुणु कहिउ केणावि निमित्तिइण जह – हवेसि तुहुं निंदु सुंदरि । तयणंतरु ससि-वयणि सा निसन्न एगत्थ जिण-हरि ॥ हरिणिगमिसि-सुरु मणि धरिवि ठिय काउस्सग्गेण । ता चल-कुंडल-आहरणु तहिं सु पत्तु वेगेण ॥ [२२८०] भणइ – वंछिउ वरसु हरिणच्छि ता मुलस समुल्लवइ निंदुयत्त-दुहु मह निहोडिसु । निंदुत्तणु विहिहि वसि तसु दुहाई पुणु हउं वि फेडिसु ।। अब्भुवगमिउण इय सुरु सु तह कहमवि-हु करेइ । जह देवइ सुलसा वि इग- दियहम्मि वि पसवेइ ॥ [२२८१] तयणु सुलसह जाय-मित्ता वि मय-नंदण अवहरिवि मुयइ नेउ देवइहि सविहिहिं । सुय तीए उण सुलस- सविहि नेइ निय-पाणि-पुडइहिं ॥ कंसु वि स-निउत्तय-नरिहिं मय-वालय आणेवि । उप्पायइ पुणु मणह मुहु सिलहं ति अप्फालेवि ॥ २२८१. ८. क. मह सुहु. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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