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________________ ४६६ वस - विहलिय-सयल - विहि घिसि मई किउ पुव्व-भवि भमहुं महीयलि न उण मह न य मिउ-महुरिण वयणिण वि मई परिताय को वि ॥ नेमिनाहचरिउ [२०५२] चिर- समज्जिय- असुह-वावार [२०५३] इय विचितिरु जणय - मित्तस्सु भवियव्व-वसेण परिमिलिउ रुद्ददत्ताभिहाणह । उसुवेगवइ-ति-अभिहाण - नइहि तीरम्मि दुग्गह ॥ वेत्तलइय-अभिहाणयह गिरि - कूडह मझेण । कंचण - विसयासन्न दु-वि पत्त गरुय कट्ठेण ॥ - जह घेण य अज-जुलु छल-पवेसु जायइ मणूसहं । चलिय समुह अग्गिमहं देस ॥ कम - जोगेण य सविह-ठिय- छगल-वसिण गय- विग्ध । अइ- दुल्लंघु वि छगल-पहु लंघहिं पवण व सिग्घ ॥ इत्थ अजार्ह विणु चारुदत्तु चिंते विलविरु । असुहु किं-पि तं जेण खिज्जिरु ॥ जायइ सुहहं लवो वि । [२०५४ ] तणु निणिवि जगह वयण Jain Education International 2010_05 [२०५५] ता पयंपिउ रुद्ददत्तेण एत्तो वि हु करु अग्ग-मग्गु इय संपहारिवि । सविह- उ संगहिवि अज्ज एहु अज-जुयलु मारिवि । यच्चम्मिण भत्थडिय काउ तहुत्थल्लेवि । मज्झमि य पविसेवि ॥ संलीगंगोवंग तह २०५२. ८. क. न मिउ. [ २०५२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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