SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९६ गयणयलह अवयरिउ इहु पवन नेमिनाeafte [२६४९] अमुत्तय-नामु रिसि अह वंदेविणु पय-पउम मह हविहइ उ इय कहसु ति वि इत्तो य चाउनाणि सच्चविय - तिहुयणु । पवरु आसणु ॥ • मुणिंद | तयणु दिन्नु त रुप्पिणि भणइ जय-नय-पय- अरविंद ॥ Jain Education International 2010_05 [२६५० ] नूण ears tय मुर्णिदेण संलत्ति सच्च वि भणइ सा महरिसि पुणु गयउ साहिउ मह चेव य मुणिहिं कहहिं ताउ परुष्परिण [ २६५१] ता भणइ सच्चहामा अंगरुहो जीए हविहए पढमं । सा निय- नंदण - वीवाह - ऊसवे जायमाणम्मि ॥ मह विक हविइ नंदणु । तं जि भणिवि मंडिरु नहंगणु ॥ नंदणु इय भणिराउ । दो - वि-हु हरि दाउ ॥ [२६५२] करिह इयरी-केसेहिं डब्भ-कम्माई निरवसेसाई । इय पडिवज्जिय दुह वि कण्हं चिय लिंति सक्खिणयं ॥ स- मुहम्म पविसिरु बसहु ता केसवु भणइ - सुयसच्च वि अन्नयरम्मि दिणि मुर-रिउ त वि तयतरु [२६५३] अवर- अवसर निसिहिं सुह-सुत्त हविइ. २६४९. ४. क. अइमुत्त; ८. क. २६५०. ६. क. चेव य अ ७. क. भणिराओ. [ २६४९ नियवि कहइ कण्हस्सु रुपिणि । रयणु तुझ हविहे भामिणि ॥ अलिउ सिविणु साहेइ । सुय - उपपत्ति कइ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy