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________________ २६४८ ] नवमभवि रुप्पिणिहरणु [२६४५] अह पहुत्त कण्डु विहसंतु जंपर य रुप्पिणि- पुरउ ता रुप्पिणि भणइ तयणु कण्ह-चयणिण कमिण सयलहं हरि- दइयाहं । रुप्पिणि पणमइ जह - विहिण सच्चहाम - पमुहाहं ॥ पहु पहुँ पढमु पासु कवणहि ॥ सुणु पडहि चलणिहि स भइणिहि । [२६४६] किंतु समगु वि ताल-रव-पुव्वु स- विलक्ख विहसिवि भणहिं ay or after afte सच्चहाम-पमुहाउ देविउ । सिरि-मईए पूइउ विलेविउ ॥ परिय-मण-संतो तयणु जणद्दणु वज्जरइ | aणु पणमिय निय भइणि जइ ता तुम्हहं को दोसु ॥ Jain Education International 2010_05 [२६४७] एत्थ - अंतरि मंति सामंत मंडलिय नराeिas ता गरुय - महसविण तयणु विणिज्जिय-जय - तरुणि अग्ग-महिसि रुप्पिणि विहिय नर - Free अंग दुज्जोहणु निवs हरिता जंपिउ सच्चहं - हवइ मह सुउता तसु देज्ज धुवु [२६४८] अवर-अवसर उग्गसेणस्सु पत्त दार- देसम्म अ-सरिस | जंति स-घरि वल - कण्ह स-हरिस || निय-गुण-निउरुवेण । कण्हिण साणंदेण ॥ सच्चहा-देविहि सहोयरु । भवणि पतु सव्वंग - सुंदरु ॥ जइ बंधव तुह पुत्ति । अन्न म करिसि कु- जुत्ति ॥ २६४६. ३. क. पमुहाहं देविओ; ४. क. अम्हिहि. २६४७. ६. क. ५१५ तय for जय ७. क. नियरुवेण; ८. क. महिसि रि. ख. वि कय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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