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________________ ५६६ नेमिनाrafts [२५१०] ता स-मंदिर कह वलएव समुत निरिक्खिउण परिखलिर-गग्गर- गिरहिं एत्तिउ कालु स नर्दणहं तह अभिमुहु अब्भुट्टिउण सउरि हरिस - रोमंच - अंचिउ । भणिरु - अहह हउं किह णु वंचि ॥ Jain Education International 2010_05 मुह- दंसण- सुक्खेण । सह जायव-लक्खेण ॥ [२५११] करिवि केसवु नियय - उच्छंगि अद्धासणि पुणु मुसलि अह जायव - निव- निवह पुच्छहिं वसुदेवह पुरउ अह व रु सयलु वि सु तहं सन्निसन्तु वसुदेव आसणि । सयलि दूरु विम्हइय निय-मणि ॥ भणु को तंतु । कहइ साइ- पज्जंतु ॥ [२५१२] तयणु निवइण समुदविजएण उववृहिय वहु-विहिहिं इगनासिय धूय-जय तहिं आगंतु स-अंगरु ता जायव-जणु हरिस- हिउ विम्हिय-मुह अरविंदु ॥ तुट्ट-मणिण ते सउरि-नंदण | देवई व वियसंत - लोयण ॥ अवगूहइ साणंदु | [२५१३] एग - चित्तिण महुर-नयरीए धरणयह विमोइउण तेणावि महा-महिण दियह- मुहुत्तिण केसवह एत्थंतर निसु इयर जारिस कह संयुत्त ॥ - उग्गसेणु ठाव निवत्तिण । सच्चहाम स-दुहिय पवित्तिण ॥ दिन्न सु-लक्खण-जुत्त । [ २५१० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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