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________________ ५३३ २३४३ ] नवमभवि नेमिसूइकम्मु [२३३६] जिणु जणणि नमिवि तो चउदिसि पि संवट्टय-पवणिण सोहयंति । सव्वत्थ वि जोयण-मेत्तु खेत्तु कुव्वंति य तिण-कयवरिहिं चत्तु ॥ [२३३७] तो उइह-लोय-दिसि-देवि अट्ठ परिसिंचहिं मेहिण महि पहट्ट । पोरस्थिम-रुयगह दिसि-कुमारि संपत्त अट्ट आयंस-धारि ॥ [२३३८] ता दाहिण-रुयगह अट्ट देवि भिंगार ठंति करयलि करेवि । पुणु पच्छिम-रुयगह अट्ठ पत्त तहिं ठंति धरिवि वीयण पवित्त ॥ [२३३९] तो उत्तर-रुयगह देवि अट्ठ चामर धरंति आवेवि लट्ठ । अह विदिसि रुयग-चउदिसि-कुमारि विदिसीसु ठंति सु-पईव-धारि॥ [२३४०] अह मज्झिम-रुयग-निवासिणीउ चउदिसि-कुमारि सु-नियंसणीउ । जिण-नाहि-नालु कप्पिवि पवित्तु वियरइ खिवंति रयणेहिं जुत्तु । [२३४१] हरियाल-पीटु तस्सुवरि ताउ विरयंति भत्ति-भाविय-मणाउ । तो जम्मण-घरह पुरथिमेण दाहिणिण तहेव य उत्तरेण ॥ [२३४२] कयलीहराई सु-मणोहराई चउसालय-मंदिर-संजुयाई । वर-रयणमइय-सिंहासणाई कुवंति ताउ वेउन्वियाई ॥ [२३४३] तो दाहिण-कयलीहरि जिणिंदु सिवएविहिं सहुं *भवणेग'-इंदु । अभंगिवि उव्वदेवि +देहि तो निति पुव-कयलिहर-गेहि ॥ २३३६. १. क. चउद्दिसिं. *The portion from भ° (2343. 2.)to °मयर (2354. 3.) is based on ms. ख. only. २३४३. २. भवण३. वेहि. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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