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________________ स्थाद्वाष और सापेक्षवाद उदाहरण को स्पष्ट करने के लिये तत्संबन्धी वैज्ञानिक मान्यता को कुछ स्पष्ट करना होगा। आधुनिक विज्ञान के मतानुसार प्रकाश एक सेकिण्ड में १,८६,००० मील गति करता है । उसी गति से जितनी दूर वह एक वर्ष में जाता है उस दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं । ब्रह्माण्ड में एक दूसरे से लाखों प्रकाश वर्ष दूरी पर अनेकों तारिका पुञ्ज हैं । एक नीहारिका में होने वाला प्रकाशात्मक विस्फोट एक लाख प्रकाश वर्ष दूर स्थित अन्य नीहारिका में या हमारी पृथ्वी पर यदि हम उससे उतनी ही दूर हैं तो एक लाख वर्ष बाद में दीखेगा क्योंकि प्रकाश को हम तक पहुँचने में १ लाख वर्ष लगेंगे । किन्तु हमें ऐसे लगेगा कि यह घटना अभी ही हो रही है जिसे हम देख रहे है । सारांश यह हुआ कि मनुष्य बहुत अर्थों में व्यावहारिक सत्य को ही अपनाकर चलता है । यदि उस नीहारिका का कोई प्राणी हम से मिले व उस घटना के विषय में बात करे तो हमारा और उसका निर्णय एक दूसरे से उल्टा होगा; पर अपने अपने क्षेत्र की अपेक्षा से दोनों निर्णय सही होंगे। स्याद्वाद-शास्त्र की सप्त भंगी भी प्रत्येक वस्तु को स्वद्रव्य क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से 'अस्ति' (है) स्वीकार करती है; और पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से 'नास्ति' (नहीं है) स्वीकार करती है । जैसे हम एक घट के विषय में कहते हैं कि यह मिट्टी का घड़ा है, यह राजस्थान का बना है, यह ग्रीष्म ऋतु में बना हुआ है, यह गौर वर्ण अमुक नाम का है ; उसी समय उसी घट के विषय में दूसरा व्यक्ति कहता है—यह स्वर्ण का घट नहीं है, यह विदर्भ प्रान्त का घट नहीं है. यह हेमन्त काल का घट नहीं है, यह श्याम वर्ण व अमुक प्रकार का घट नहीं है । यहाँ 'है' व 'नहीं है' देश-काल सापेक्ष हैं । स्याद्वाद की तरह सापेक्षवाद में भी तथा प्रकार के सापेक्ष उदाहरणों की बहुलता है, जो नयवाद व सप्त भंगी द्वारा समर्थन पाते हैं । प्रो० एडिंगटन दिशा की सापेक्ष स्थितियों पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं.-"सापेक्ष स्थिति को समझने के लिये सब से सहज उदाहरण किसी पदार्थ की दिशा का है । एडिनवर्ग की अपेक्षा से केम्ब्रिज की एक दिशा है और लन्दन की अपेक्षा से एक अन्य दिशा है। इसी तरह और और अपेक्षामों से । हम यह कभी नहीं सोचते कि उसकी वास्तविक दिशा क्या है ?" - 1. A more familiar example of a relative quantity is direction' of an object. There is a direction of Cambridge relative to Ediburgh and another direction relative to London and so on. It never occurs to us to think of this as discrepancy or to suppose that there must be same direction of Cambridge (at present undiscoverable) which is absolute. -The Nature of Physical World, p. 26. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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