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________________ परंतु सर्वजघन्य गुणवाले (अविभागी और एकगुणवाला सर्वजघन्य कहलाता है।) परमाणुओं में बंध नहीं होता।' समान अंश, समान गुण (दो, चार, छ, और केवल स्निग्ध या केवल रुक्ष सदृश परमाणु) रहने पर भी बंध नहीं होता। स्निग्धता या रुक्षता में दो अंश आदि अधिक हो तो सदृश परमाणु मिलकर स्कंध बना सकते हैं। जैसे दो परमाणु का चार परमाणुओं के साथ बंध हो सकता है।' बंध होने पर अधिकगुणवाला न्यूनगुणवाले का अपने रूप में परिणमन करवा लेता है। इसको अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से अंकलंक ने कहा- “तात्पर्य यह कि दो गुण स्निग्ध परमाणु को चारगुण रुक्ष परमाणु पारिणामिक होता है, बन्ध होने पर एक तीसरी ही विलक्षण अवस्था होकर एक स्कन्ध बन जाता है। अन्यथा सफेद और काले धागे के संयोग होने पर भी दोनों से रखे रहेंगे। जहाँ पारिणामिकता होती हैं वहाँ स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि में परिवर्तन हो जाता है। जैसे शुक्ल और पीत रंगों के मिलने पर हरे रंग के पत्र आदि उत्पन्न होते है। बंध के विषय में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में कुछ असमानता है। तत्वार्थ सूत्र के पाँचवे अध्याय के सूत्र 37 में कुछ पाठभेद हैं। दिगम्बर परम्परा में "बंधेधिका पारिणामिकौच" हैं, जबकि श्वेताम्बर परंपरा में "बंधे समाधिको पारिणामिकौ" पाठ है। इसका तात्पर्य है, स्निग्ध का द्विगुण रुक्ष भी पारिणामिक होता है, जबकि दिगम्बर मान्यता है, चाहे सदृश हो या विसदृश दो अधिक गुणवालों का ही बंध होता है, अन्य का नहीं। जैसे दो का चार के साथ और तीन का पाँच के साथा' सूक्ष्मताः-इसका अर्थ है छोटापन। यह दो प्रकार की है-अत्यंत सूक्ष्मता और आपेक्षिक सूक्ष्मता। अत्यंत सूक्ष्मता परमाणु में पायी जाती है और आपेक्षिक सूक्ष्मता- यह दो वस्तुओं की तुलना द्वारा ज्ञात होती है जैसे आँवले की अपेक्षा 1. त. सू. 5.34 2. त. सू. 5.35 3. त. सू. 5.36 4. त. सू. 5.37 5. त. रा. वा. 5.37.2.500 त. रा. वा. 5.36.2.499 196 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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