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________________ १८ आधुनिक वृत्तान्त आदिनाथ अजितनाथ वगैरह तीर्थंकरों की एक या अधिक मूर्तियें विराजमान हैं । उदासीनवृत्ति को धारण की हुई इन संगमर्मर की मूर्तियों का सुंदर आकार, चाँदी की दीपिकाओं के मंद प्रकाश में अस्पष्ट,, परंतु भव्य दिखाई देता है । अगरबत्तियों की सघन सुगन्धि सारे पर्वत पर व्याप्त रहती है । संगमर्मर के चमकीले फरस पर भक्तिमान स्त्रियें, सुवर्ण के श्रृंगार और विविध रंग के वस्त्र पहन कर जगजगाहट मारती हुई और एकस्वर से, परंतु मधुर आवाज से स्तवना करती हुई, नंगे पैर से धीमे धीमे मंदिरों को प्रदक्षिणा दिया करती है । शत्रुजय पर्वत को सचमुच ही, पूर्वीय देशों की अद्भुत कथाओं के एक कल्पित पहाड की यथार्थ उपमा दी जा सकती है और उसके अधिवासी मानो एकाएक संगमरमर के पूतले बन गये हों, परन्तु अप्सरायें आ कर उन्हें अपने हाथों से स्वच्छ और चमकित रखती हों, सुगन्धित पदार्थों के धूप धरती हों तथा अपने सुस्वर द्वारा देवों के शृंगारिक गीत गा कर हवा को गान से भरती हों; ऐसा आभास होता है ।" __पर्वत पर नौ या दश टोंक हैं । प्रत्येक टोंक में छोटे बड़े सेंकडो मंदिर बने हुए हैं । यदि इन मंदिरों का पूरा पूरा हाल लिखा जाय तो एक बहुत ही बडी पुस्तक बन जाय । इतने मंदिरों का वृत्तान्त लिखना तो बड़ी बात है, गिनती भी करना कठिन है । हम यहाँ पर संक्षेप में केवल नौ टोंकों का उल्लेख कर देते हैं । १ चौमुखजी की टोंक । ___ यह टोंक दो विभागों में बंटी हुई है । बहार के विभाग को 'खरतर-वसही' और अंदर के विभाग को 'चौमुख-वसही' कहते हैं । यह टोंक पर्वत के सबसे ऊँचे भाग पर बनी हुई है । 'चौमुख-वसही' के मध्य में आदिनाथ भगवान का चतुर्मुख प्रासाद (मंदिर) है । यह प्रासाद क्या है मानो एक बडा भारी गढ है । इसकी लंबाई ६३ फूट Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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