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________________ आधुनिक वृत्तान्त १७ को पाया हुआ रमणीय पर्वत गिरनार दिखाई देता है । उत्तर की तरफ शिहोर के आसपास के पहाड, नष्टावस्था को प्राप्त हुई वल्लभी के विचित्र दृश्यों का शायद ही रुन्धन करते है । आदिनाथं के पर्वत की तलेटी से सटे हुए पालिताणा शहर के मिनारे, जो घनघटा के आरपार, धूप में चलका करते हैं, दृष्टिगोचर होने पर दृश्य के अग्रगामी बनते हैं; और नजर जो है सो चाँदी के प्रवाह समान चमकती हुई शत्रुजयी नदी के बांके चूंके बहते पूर्वीय प्रवाह के साथ धीरे धीरे चलती हुई तलाजे के, सुंदर देवमंदिरों से शोभित पर्वत पर, थोडी सी देर तक जा ठहरती है और वहां से परलीपार जहां प्राचीन गोपनाथ और मधुमती को, ऊछलते समुद्र की लीला करती हुई लहरें आ आकर टकराती हैं, वहां तक पहुंच जाती है ।" __पर्वत पर की सभी टोंकों के इर्द गिर्द एक बडा मजबूत पत्थर का कोट बना हुआ है । कोट में गोली चलाने योग्य भवारियाँ भी बनी हुई हैं । इस कोट के कारण पर्वत एक किले ही का रूप धारण किये हुए है । टोंकों में प्रवेश करने के लिये आखे कोट में केवल दो ही बडे दरवाजे बने हुए हैं । "कोट के भीतर प्रवेश कीजिए कि एक चौक के बाद दूसरा चौक और दूसरे के बाद तीसरा; इसी तरह एक मंदिर के बाद दूसरा मंदिर और दूसरे के बाद तीसरा; चौक और मंदिर मिलते चले जायेंगे । मंदिरो की कारीगरी, उनकी बनावट, उनमें लगा हुआ पत्थर और उनके भीतर की सजावट का सैंकडों प्रकार का सामान आदि सब ही चीजें बहुमूल्य हैं । प्रतिमाओं की तो कुछ गिनती ही नहीं हैं । एक श्रद्धालु भक्त की जिधर को नजर जाती है, उधर ही उसे मुक्तात्माओं के प्रतिबिंब दिखलाइ देते हैं । कुछ समय के लिये तो मानो वह आपको मुक्तिनगरी का एक पथिक समझने लगता है ।" फार्बस साहब भी कहते हैं कि - "प्रत्येक मंदिर के गर्भागार में Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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