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________________ सुखेश । पिताको लाभदायी, आयुष्यवान, प्रसिद्ध, पुत्रोंका पालक, अच्छे पुत्रोवाला होता है। बुद्धिमान, शुभवचनी, प्रसिद्ध पुत्रवान, सज्जनोंमें प्रसिद्ध तनयेश राजा से मान, पिताको लाभदायी, प्रसिद्ध, धार्मिक, धनवान और सुखी होता है। पितृ-कार्य प्रिय, पिताका पाला हुआ, मातृ-भक्त. कूरसे माँ-बापका वैरी पिता-पुत्र परस्पर वैरी, उसका पिता या पुत्र रोगी, चीर स्थायी हों ऐसी लक्ष्मी प्राप्त करनेवाला चंचल, पितृ-वैरी, स्नेहल, उसका पिता- मृदुभाषी, उसकी स्त्रीको उसका पिता (श्वसुर) पाले पिताका शत्रु, पिता का धन ले लेनेवाला, पिता रोगी, पितासे झगड़े कूरसे-माता के धनका नाश, पिताको दोष देनेवाला, शुभसे धन-संचय करनेवाला होता है। शत्रुवाला, मानहीन, कूरसे रोगी और निर्धन होता है। नीरोगी, शत्रुसे सुखी, कृपण, जन्मसे खेदरहित, दुष्ट स्थानवासी होता है । षष्ठमेश पिता-पुत्र परस्पर वैरी, कूर से पुत्रसे पिताकी मृत्यु, शुभसे-धन रहित, दुष्ट, पदवीधारी कपटी होता है। सौभागी, पुत्रवान, हठी, उसकी स्त्रीको पुत्र पाले। जायेश स्त्रीका वैरी, स्त्री रोगी होती है, क्रूर ग्रहसेस्त्री संग से मृत्यु अष्टमेश कूरसे-पुत्ररहित, शुभसे-शुभ फल, पुत्र जीवित नहीं रहते हैं। (यदि जीये तो धूर्त होते है।) भाग्येश कर्मेश पितृसेवी, प्रसिद्ध, सुकृत्य कर्ता, पितृकर्म प्रेमी सुखी, सच्चारित्री, माँ-बाप का सेवक , राजासे मान प्राप्त करनेवाला। लम्बी आयु, पितृभक्त, चतुर, धर्मप्रेमी, धर्मसे लाभान्वित कृपण, रोगसे भय, सुकृत कर्ता, पुत्र से मृत्यु, निरन्तर दुःखी धार्मिक, देव-गुरु पूजक, रूपवान, धार्मिक, पुत्रवान सुकृत कर्ता, मश्करा स्वभाव, राजासे लाभ,गायक-वादक, माता का पाला हुआ। पिता-पुत्र परस्पर प्रीति समानगुण-अल्पायुषी सूर्य-राजा का विरोधी, गुरु-खेद, शुक्र-नेत्रदोष, चंद्र-रोगी, मंगल-क्रोधी बुध-साप से इर शनिमुखमें पीडाकार होता है। शत्रुके सामने नम्र, पापी, कला रहित, निंदा प्रिय शत्रुसे इरपोक, लोभी, निर्दयी, निरोगी, कजियाखोर लंबी बिमारी, ज्यादा शत्रु, कूरसे-विदेशमें चोरके हाथसे मृत्यु होती है। कूरसे-कृपण, नेत्रदोष, अल्पायुषी, शुक्रसे-अंध होता है। लामेश व्ययेश कूरसे-पुत्रविहिन, शुभसेपुत्रवान, पितृधनसे सुख, भोगी, सामर्थ्य रहित अष्टम भाव नवम भाव लग्नेश सप्तमभाव तेजस्वी, अच्छा स्वभाव, रूपवान, अच्छे स्वभावकी पत्नीवाला ज्यादाभाई, अच्छे मित्र, पुण्यवान, अच्छा स्वभाव, धर्ममें प्रसिद्ध, तेजस्वी लोभी, धनवान, आयुष्यवान कूरसे-एक आँख से काना, शुभसे अच्छा आदमी होता है पाखंड़ी,आत्मघाती, भाग्यभोगी, पराये धनके लिए हिंसक होता है। धनेश श्रेष्ठ, विलासी, लोभी स्त्री वाला, पाप ग्रहसेबाँझ स्त्रीवाला होता है। शुभसे-दानी, प्रसिद्ध वक्ता कूरसे-दरिद्र, भिखारी, आडंबरी 990 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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