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________________ पर्व तृतीय ---- श्री आत्मानंदजी म.के व्यक्तित्वका मूल्यांकन- ज्योतिष्चक्रके परिवेशमें ---- "विश्वके कोने कोने में छा रहा जो कीर्तिमान; नभतल भूतल मुग्ध बने हैं तेरा ओजस् तेरी शान; अंबर अवनिमें अंकित अक्षर कर रहे हैं यशोगान; जिससे प्रस्फुटित जीवनधारा बह रही जमीं आसमान।" साम्प्रतकालमें प्रतिदिन ज्योतिष शास्त्रके प्रति आस्था वृद्धिगत होती नज़र आ रही हैं। प्रत्येक कार्य व प्रसंगके लिए भविष्य-कथन पृच्छा होती है। प्रत्युत्तर कथन पर आधारित कार्यक्रम निश्चित करके व्यक्ति अपने जीवनसे अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है अथवा हानिसे बच सकता है। राशि-ग्रह-नक्षत्र आदि नभमंडल स्थित ज्योतिष्-चक्र मानवजीवन पर कब-कैसा, प्रभाव कैसे छोड़ता है?; उसका चार-क्षेत्र, परस्पर-सम्बन्ध आदिका जन-जीवन, समाज--जीवन, राष्ट्रजीवन, विश्व--जीवन पर किस प्रकार असर होता है-इन सारी बातोंका विश्लेषण हमें इस ज्योतिष-शास्त्रसे प्राप्त होता है। इन बातों से अवगत होने के पश्चात् एकदा आचार्य प्रवर श्रीमदात्मानंदजी महाराजजीके साहित्यका अभ्यास करते हुए पूज्य गुरुदेवकी जन्म कुंडली (लग्न कुंडली) के दर्शन हुए। तत्क्षण दिलमें एक भावतरंग उद्भवित हुई कि, पूज्यपादजी की जीवन घटनाओंका इस शास्त्रावलम्बनसे, जन्म कुंडली पर आधारित मूल्यांकन क्यों न किया जाय ? जिससे यह निश्चित कर सकें कि, उनके जीवन में घटित घटनायें उनके जन्मसे ही निश्चित बन चुकी थी, जो उनके पूर्व जन्म-कृत कर्मके फल स्वरूप थीं। उनके जीवन प्रसंगों के मूल्यांकन पूर्व ज्योतिष-शास्त्रका संक्षिप्त परिचय ज्ञात करना आवश्यक है। अतएव ज्योतिष-शास्त्रका परिचय अत्र प्रस्तुत करना उचित होगा। अनादिकालीन संसार व्यवस्थाको नियंत्रित करनेवाले पाँच कारण गीतार्थ जैनाचार्योंने माने हैं (१) काल (२) स्वभाव (३) नियति (४) पुरुषार्थ (4) कर्म।' किसीभी कार्यका या प्रसंगका घटित या अघटित होना-इन पाँचके ही अन्वय-व्यतिरेक अथवा सम्मिलन-विघटन पर निर्भर होता है। यथा-जो कार्य जिस कालमें घटित या अघटित होनेवाला होता है, तब उस कार्यके कारणोंका स्वभाव वैसे ही अनुरूप या प्रतिरूप होता है; और उस कार्यके घटित-अघटित होनेका निश्चय होता है। तत्पश्चात् उस कार्यके लिए पुरुषार्थ करनेमें उद्यत होनेसे, पूर्वोपार्जित कर्म संचरित होता है; अन्ततोगत्वा कार्य सम्पन्न होता है। उदा.-किसीभी पदार्थका निर्माण करना है, तो वहाँ कर्ता, कार्यशक्ति, उपादानकारण (रो. मटिरियल), उपकरण (साधन) और स्थान-ये पांच चीजें आवश्यक हैं। जैसे मकान बनानेके लिए-कर्ता (मकान बनानेवाला मालिक), कार्यशक्ति, (मकान निर्माण करनेवाले बढ़ई, मिस्त्री, मज़दूर आदि) उपादान कारण (ईंट, चूना, सिमेन्ट, लकड़ी लोहा आदि) उपकरण (फावड़ा, कुल्हाड़ी आदि), स्थान (जहाँ मकान निर्माण होगा वह जमीन) आवश्यक होता है। इन पाँचोके सहयोग एवं समन्वयसे ही मकान निर्माण शक्य है, अन्यथा नहीं। इनमेंसे एकभी कम हों या यथास्थित (87) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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