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________________ कला अत्यंत असाधारण आकर्षणयुक्त थी। ओजस्वी भाषा दिलको छू लेती थी, तो अतिशय सरल भी थी। मेघध्वनि तुल्य गंभीर और सतत सुनते ही रहनेका मन हों ऐसी थी ..............कई लोग तो सोचते थे, आपका व्याख्यान सुनने और समझनेकी उन्हें अत्यावश्यकता होने से उन्हें व्याख्यान पीठके एकदम नज़दीक बैठनेका मौका मिले।” ११५ आपके व्याख्यानमें सुनाये जानेवाले शिक्षाप्रद फिरभी सरल और मधुर दृष्टांत बच्चोंकों भी याद रह जाते थे। उसकी कुछ अलप-झलप झाँकि “श्री विजयनंदाभ्युदयम् महाकाव्यम्"-जीवन चरित्र ग्रंथमें श्री हीरालाल वि. हंसराजजीने सुंदर ढंगसे दी है। सप्त व्यसन त्याग या राग-द्वेष परिणति त्याग, अनेक पत्नीत्व-बालविवाह-दहेजादि कुरूढियों जैसे गंभीर या गहन विषयों को भी रोचक प्रवाही शैली के भाववाही दृष्टांत द्वारा पेश करना आपकी व्याख्यान कलाका उत्तम गुण था। “आपकी विषय विवेचन शैली ऐसी मनोहर थी कि एक छोटा बच्चा जिस भावसे उसको समझ पाता था वैसाही विद्वान भी। आपश्रीकी देवी व्याख्यान कला पर, पदार्थ निरूपण शक्ति पर और सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्व प्रतिपादन शैली पर हज़ारो आत्मायें-साक्षर मंत्रमुग्ध बन जाते थे। अनेक तत्त्व गवेषक दूर-दूर से आपकी वाणीके अमृतपान करनेके लिए आते थे।१६ व्याख्यान कलाकी भाँति ही आपका प्रत्युत्पन्न मति उत्तरदान भी अद्वितीय था। “सरलता, कुशलता, गंभीरता, उदारता, शान्ति, स्थित प्रज्ञता, निष्पक्षता, दूरदर्शितादि अनेक गुण आपके प्रत्युत्तरमें दृष्टिगोचर होते हैं।"११७ इसके अतिरिक्त प्रश्नकर्ताकी जिज्ञासा, परिस्थिति, योग्यायोग्यतादिका भी ध्यान रखते थे जिससे प्रश्नकर्ता संतुष्ट होकर निरुत्तर हो जाते थे। जैसे किसीने पूछा, 'आप रामको नहीं मानते? आपका प्रत्युत्तर था-“हम सिद्ध पद प्राप्त पुरुष-राम-को अवश्य मानते हैं और श्री नमस्कार महामंत्रके स्मरण करते समय द्वितीय पद 'नमो सिद्धाणं' से नमस्कार भी करते हैं।" किसीने पूछा-'यदि सब साधु हो जाय तो आहार-पानी कौन देगा ?' आपका प्रत्युत्तर था 'जंगलके वृक्ष देने लगेंगें।' (यदि उत्तर असम्भव है तो प्रश्नभीतो असंभव ही है। मालेर कोटलामें किसी मुस्लिमके प्रश्न “साधुको मांगकर खाना अच्छा नहीं है। उसे तो परिश्रम करके खाना चहिए"।-उत्तर था-"हमें, हम पाँच महाव्रत पालतेहुए, कौनसा काम कर सकते है यह बताओ।” उसका “जंगलकी लकड़ियाँ इकट्ठी करके बेचने के प्रस्ताव पर आपने समझाया कि उसको भी अगर उसके स्वामीसे मांगनी ही पड़ेगी। इससे हमारा यह भोजन याचना-माधुकरीअच्छा है। ___इस तरह सामान्य प्रश्नकर्ता अपने अनुसार और विद्वान अपने अनुरूप समान संतोष प्राप्त करते थे। जैसे जर्मन विद्वान डो. होर्नल 'उपासक दशांग' सूत्रके अनुवाद समय उत्पन्न समस्याओंके प्रत्युत्तर प्राप्त करके ऐसे प्रभावित हुए कि अपना ग्रन्थ आपके नाम समर्पित कर दिया। वैसे ही कई हिन्दू या आर्य समाजी, मुस्लिम या ईसाई विद्वानोंको भी आपने अनेक शास्त्राधारित प्रमाण प्रस्तुत करके प्रसन्न कर दिये और निरुत्तर भी। उत्कट वैराग्य भाव होनेपर भी आपको शुष्क आध्यात्मिकताका सहारा स्वीकार्य नहीं था। शासनोन्नतिके पथ पर खंडन-मंडन, वाद-विवाद और युक्ति-प्रयुक्तिके प्रतिपक्षियोंके आलबेल-पड़कारको झेलकर शास्त्रोक्त, प्रामाणिक, युक्तियुक्त खंडन-मंडनकी पटुतासे तार्किक शिरोमणी गुरुदेवने शुद्ध (82) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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