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________________ 39 अनुवाद : चारों कषायों का त्याग करने वाले, चतुर्विध समवसरण में दान, शील, तप एवं भाव रूप चार प्रकार के धर्म का कथन करने वाले और चतुर्गति (देव, मनुष्य, नारकी, तिर्यंच) के दुःख का दलन (नाश) करने वाले, ऐसे वे अरिहंत मेरे शरणभूत हों । आराधना प्रकरण जे अट्टकम्ममुक्का, वरकेवलनाणमुणिअ परमत्था । अट्ठमयद्वाणरहिआ', अरिहंता' मज्झ ते सरणं ॥ 33 ॥ जे अट्ठकम्ममुक्का परमत्था वरकेवलनाण मुणिअ अट्ठमयट्ठाणरहिआ ते अरिहंता मज्झ सरणं ( होन्तु) । अनुवाद : जो आठ कर्मों से रहित (सिद्धि को) प्राप्त करने वाले, परमार्थ व श्रेष्ठ केवलज्ञान को जानने वाले तथा आठ प्रकार के मद से रहित, ऐसे वे अरिहंत मेरे शरणभूत हों । भवखित्ते अरुहंता, भवारिप्पहरणेण अरिहंता । जे तिजगपूअणिज्जा, अरिहंता मज्झ ते सरणं ॥ 34 ॥ अन्वय अन्वय भवखित्ते अरुहंता, भवारिप्पहरणेण जे अरिहंता च (जे) तिजगपूअणिज्जा, अरिहंता मज्झा सरणं ( होन्तु) । अनुवाद : संसार क्षेत्र में जन्म नहीं लेने वाले, भव रूपी शत्रु का हरण कर दें, ऐसे जो अरिहंत हैं, तथा जो तीनों जगत् में पूज्यनीय हैं, ऐसे वे अरिहंत मेरे शरणभूत हों । अन्वय : तरिऊण' भवसमुद्द, रउद्ददुह' लहरि लक्खदुल्लंघ ! जे सिद्धिसुहं' पत्ता, ते सिद्धा हुन्तु में सरणं ॥ 35 ॥ : लक्खदुल्लंघं रउद्ददुह लहरि भवसमुद्दं तरिऊण जे सिद्धिसुहं पत्ता ते सिद्धा में सरणं (होन्तु) । अनुवाद : करोड़ों ( लाखों - लाख) दुर्लंघनीय एवं देखने में भयानक दुःख रूपी तरंगों वाले संसार-सागर को पार करके जिन्होंने सिद्धि के लिए सुख प्राप्त किया है, ऐसे सिद्ध मेरे शरणभूत हों । ज' भंजिऊण तवमुग्गरेहिं' निवडाई" कम्मनिअलाई" | हुन्तु मे सरणं ॥ 36 ॥ संपत्ता मुक्खसुहं, ते सिद्धा 1. (अ) अट्ठमयज्झाणरहिआ 5. (ब) दुलहरि 9. (अ) तवमुग्गेण Jain Education International 2. (ब) - अरिहं हंता 6. (ब) दुख 10. (अ) निविडाईं 3. ( अ, ब ) भावा 4. (अ) तरिउण 7. (अ) सिद्धसुहं 8. (ब) जे 11. (ब) - निगडाई For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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