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________________ आराधना प्रकरण अन्वय : पाणाइवायं अलीकं, चोरिकम्मं, मेहुणं, दविणमुच्छं, कोहं, माणं, मायं, लोभं, पिजं तहा दोसं। अनुवाद : हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह (धन के प्रति मूर्छा), क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष (पाप कहे गये हैं)। कलहं अल्पक्खाणं पेसुन्नं' रइअरई समाउत्तं । परपरिवायं माया-मोसं मिच्छत्तं सल्लं च ॥29॥ अन्वय : कलहं, अल्पक्खाणं, पेसुन्नं, रइअरइं, परपरिवायं, मायामोसं मिच्छत्तं च सल्लं समाउत्तं। अनुवाद : कलह, कूट, पैशुन्य, रति-अरति, परपरिवाद, छल-छद्म, मिथ्यात्व और शल्य पाप कहे गये हैं। __ वोसिरसु इमाइं मुक्खमग्ग-संसग्गे विग्धभूयाइं। दुग्गइ - निबंधणाइं, अट्ठारस - पावगणाई॥30॥ · अन्वय : मुक्खमग्ग-संसग्गे विग्घभूयाइं दुग्गइ-निबंधणाई इमाइं अट्ठारस पावगणाई वोसिरसु। अनुवाद : मोक्ष मार्ग के संसर्ग में विघ्नभूत, दुर्गति का निबन्धन करने वाले इन अठारह प्रकार के पापों का त्याग करो। चउतीसअइसयजुआ, अट्ठमहापाडिहार पडिपुन्ना। सुरविहिअसमोसरणा' अरिहंता मज्झ ते सरणं॥31॥ अन्वय : चउतीस अइसयजुआ अट्ठमहापाडिहारपडिपुन्ना सुरविहिअ समोसरणा अरिहंता मज्झ ते सरणं (होन्तु)। अनुवाद : चौंतीस अतिशयों से युक्त, आठ प्रातिहार्यों से परिपूर्ण और देवताओं सहित समवसरण की रचना करने वाले (ऐसे), वे अरिहंत मेरे शरणभूत हों। चउविहकसायचत्ता', चउवयणा चउप्पयार धम्मकहा। चउगइदुहनिद्दलणा, अरिहंता मज्झ ते सरणं ॥32॥ अन्वय : चउविह कसयचत्ता चउप्पयार धम्मकहा चउगइदुहनिद्दलणा ते अरिहंता ___ मज्झ सरणं (होन्तु)। 1. (अ) पेसु 2. (ब) रइअरइ 3. (ब) परिपरिवायं 4. (अ, ब) मिच्छत्त 5. (अ) संसग्गि, ब - संसग्ग 6. (अ, ब) पाडिहेर 7. (ब) “समवसरणा 8. (ब) अरहंता 9. (अ) चउवीह 10. (अ) चउवयार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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