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________________ समत्वयोग--एक समनवयदृष्टि कार्य को अपनी सम्पूर्ण क्षमता से करे । समाज में पतन तब आता है जब व्यक्ति अपना 'कर्म' छोड़कर अन्य कर्म भी करना चाहे । प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य में अर्थ को उतना ही महत्त्व दिया जायगा कि व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाय । प्लेटो स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करते हैं कि मनुष्यों में वैयक्तिक भिन्नताएँ होती हैं । दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से पूर्णरूपेण समान नहीं होता । उनमें कई दृष्टियों से असमानताएँ होती हैं। इसीलिए प्लेटो की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार काम मिलना चाहिए । इतना ही नहीं, कार्यों के स्वरूप में भी भिन्नताएँ होती हैं । अतः कार्यों या व्यवसायों की माँगों के अनुसार व्यक्तियों का चुनाव करना चाहिए । प्लेटो के इस मत को सार रूप में इस प्रकार कह सकते हैं कि 'काम को आदमी और आदमी को काम' मिलना चाहिए । प्लेटो के रिपब्लिक की प्रमुख समस्या है - न्याय (नैतिकता) का स्वरूप क्या है ? तथा क्या अन्यायी व्यक्ति (अनैतिक व्यक्ति) न्यायी व्यक्ति की तुलना में सुखी रहता है ? प्रथम प्लेटो इन प्रश्नों के प्रचलित उत्तरों का खण्डन करते हैं । इसके उपरान्त इन प्रश्नों के उत्तर के लिए 'आदर्श राज्य' की कल्पना करते हैं । पहले उन्होंने इन प्रश्नों का उत्तर समाज के संदर्भ में देने का प्रयत्न किया है और इसके बाद (उन्हीं तर्कों के आधार पर) आत्मा या व्यक्ति के संदर्भ में न्याय के प्रश्न पर चर्चा की है। न्याय की समस्या को प्लेटो ने दो संदर्भो में उठाया है - प्रथम राज्य (समाज) के संदर्भ में तथा द्वितीय व्यक्ति या आत्मा के संदर्भ में । प्लेटो के आदर्श राज्य में तीन कोटियों के व्यक्ति हैं - उत्पादक वर्ग (Economic Class), सैनिक वर्ग तथा शासक वर्ग । इन व्यक्तियों को उनकी योग्यता के आधार पर ही इन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है । प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को केवल वही कर्म करना चाहिए जो कि उसके वर्ग के लिए करना है । समाज में असामान्य स्थिति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपना कार्य छोड़कर, अथवा अपने कार्य के साथ-साथ अन्य कार्य भी करने लगे । ऐसा करने पर व्यक्ति अपने मूल कार्य को भली प्रकार पूर्ण क्षमता से नहीं कर पायेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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