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________________ समत्वयोग और प्लेटो ७. समत्वयोग और प्लेटो' सुप्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक प्लेटो (८२८-३४७ ई. पूर्व ) की बहुचर्चित पुस्तक ( डायलॉग ) 'रिपब्लिक' की प्रमुख थीम, 'समरसता' है। प्लेटो की उपर्युक्त पुस्तक में वर्णित, समाज, आत्मा, शिक्षा एवं कला सम्बन्धी विचारों में इसी आदर्श - समरसता का आदर्श की प्राप्ति की झलक मिलती है । ४१ प्लेटो को इस बात से बड़ी वेदना हुई कि उसके गुरु सुकरात को जहर को पीकर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी पड़ी। क्या दोष था सुकरात का ? उसका यही दोष था कि वह सच बोलता था और शरीर को जीवित रखने के लिए आत्मा की आवाज दबाता नहीं था । प्लेटो को पता लगा कि समकालीन राज में न्याय नहीं है और इसीलिए विश्व के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति सुकरात को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा । उसने एक ऐसे आदर्श राज्य की स्थापना का संकल्प लिया जिसमें न्याय हो सके । उसनें पत्नियों और सम्पत्ति के साम्यवाद की जो बात कही उसका आधार ही समता है । प्लेटो, दार्शनिक शासक को कंचन और कामिनी के मोह से मुक्त होकर, समाज के कल्याण में प्रवृत्त होने को कहता है। उसका कहना है कि शासकों को सोने, चाँदी के बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि दिव्य प्रकार का स्वर्ण और रजत तो उनको ईश्वर से नित्य ही अपनी आत्मा के भीतर प्राप्त है, उनको मर्त्यलोक की निम्न कोटि की धातु की कोई आवश्यकता नहीं है तथा उनको पवित्रता की अपनी दैवी सम्पदा के साथ मर्त्यलोक की धातु का मिश्रण कर उसको अवैध बनाना सहन नहीं होना चाहिए। प्लेटो ने शासकों के लिए सोने-चाँदी को हाथ में लेना अथवा स्पर्श करना या उनके साथ एकत्र एक छत के नीचे रहना या आभूषणों के रूप में उनको अपने अंगों में धारण करना अथवा सोने-चाँदी के पात्रों का पीने के लिए उपयोग करना अवैध बताया । शासक वर्ग में दो गुणों आत्म-निग्रह एवं साहस के साथ-साथ 'विवेक' भी होना चाहिए। 'विवेक' ही ऐसा गुण है जिसके आधार पर वह 'क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिए' में भेद स्थापित कर सकता है । समाज आदर्श समाज तभी बन सकता है जब प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने अतः १. समता-दर्शन- व्यवहार समाज. श्री के एल. शर्मा, पृष्ठ ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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