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________________ २८२ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि मानसिक चंचलता के कारण साधक का मन एकाएक स्थिर नहीं हो पाता, अत: साधक को चाहिए कि वह स्थूल वस्तु का आलम्बन लेकर ही सूक्ष्म वस्तु की ओर बढ़े। ध्यान में आसक्तिवश बार-बार उन्हीं बातों की याद आती रहती है जो जीवन में घटित हुई हों। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आलम्बन के आधार पर धर्मध्यान चार प्रकार का है - (१) आज्ञा विचय, (२) अपाय विचय, (३) विपाक विचय तथा (४) संस्थान विचय। “विचय" शब्द का अर्थ चिन्तन करना है। ___ ध्यान के लिए योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रथम चार भावना का अभ्यास उपयोगी होता है - (१) ज्ञान भावना (२) दर्शन भावना (३) चारित्र भावना (४) वैराग्य भावना ज्ञान के अभ्यास में साधक का मन ज्ञान में लीन होता है। दर्शन भावना से - अपने आपको देखने के प्रयत्न से मानसिक मूढ़ता का निरसन होता है । चारित्र भावना से व्यवहार में समता का अभ्यास किया जाने का संकेत है और वैराग्य भावना से जगत के स्वभाव का यथार्थ दर्शन होकर आसक्ति, भय और आकांक्षा से मुक्त रहने का अभ्यास होता है। भावनाओं के अभ्यास में ध्यान के लिए मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। ध्यान का समत्व के साथ गहरा सम्बन्ध है। समता और विषमता का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शरीर सम होता है तब स्नायु संस्थान ठीक काम करता है और विषम बनता है तो स्नायु संस्थान की क्रियाएँ अव्यवस्थित हो जाती हैं। __ शरीर की समता का मन पर प्रभाव होता है और मन की समता का आत्मा पर असर होता है। मानसिक विषमता से चेतना में अस्थिरता आती है । हानि-लाभ, सुख-दुःख, राग-द्वेष से मानसिक स्थितियाँ विषम बनती हैं । मन की चंचलता बढ़ती है। जब इन स्थितियों का मन के साथ लगाव नहीं होता तब चेतना सहज में स्थिर होती है । यही अवस्था ध्यान की है। इसीलिए आचार्य शुभचन्द्र ने समभाव को ध्यान कहा है। आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं कि समता की साधना के बिना ध्यान कोरी बिडम्बना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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