SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि मातृत्व दो विशुद्ध धर्मों को माना गया है। यह स्पष्ट ही अनेकान्त है। अब हम आध्यात्मिक जगत के वर्तमान महान् चिन्तक श्री रामकृष्ण परमहंस के कार्यों पर दृष्टि डालते हैं। उनके विचारों पर अनेकान्त का काफी प्रभाव परिलक्षित होता है। डॉ० हृदयनारायण मिश्र लिखते हैं - “परम सत्ता संबंधी अपने विचारों के लिए रामकृष्ण शंकर के अद्वैत और रामानुज के विशिष्टाद्वैत दोनों से प्रभावित जान पड़ते हैं।" “वास्तव में रामकृष्ण ने इन दोनों विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया।" ऊपर बतलाया गया है कि रामानुज के सिद्धान्त पर अनेकान्त का स्पष्ट प्रभाव है। श्री रामकृष्ण ने शंकर के साथ रामानुज के विशिष्टाद्वैत को भी अंगीकार किया है। यह दो विभिन्न मतों का समावेश एवं समन्वय बिना अनेकान्त के प्रभाव के नहीं हो सकता। - प्रश्चिम के प्रसिद्ध चिन्तक श्री रोमां रोलां ने श्री रामकृष्ण के शब्दों को उद्धृत किया है - "मेरी देवी माँ निरपेक्ष से भिन्न नहीं है । वह एक ही समय में एक और अनेक दोनों __ है और एक और अनेक दोनों से परे है।"२ यहाँ एक ही देवी माँ में एक ही समय में एकत्व, अनेकत्व तथा इन दोनों से परत्व बतलाया है। यह स्पष्ट अनेकान्तवाद की दिशा है। अब स्वामी विवेकानन्द को लें। इनके भी चिन्तन एवं विचारों में अनेकान्त की समानधर्मी धारा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है । डॉ. मिश्रा लिखते हैं"एक सच्चे वेदान्ती की भाँति विवेकानन्द ने ब्रह्म और जीव की एकता को भी स्वीकार किया है। वे मानते हैं कि हमारी आत्मा भोक्ता व कर्ता के रूप में ब्रह्म से तादात्म्य नहीं रखती, किन्तु सार रूप में जीव ब्रह्म ही है।"३ इस कथन में स्वामी विवेकानंद ने अपेक्षाभेद या अवच्छेदक भेद से जीव को ब्रह्म से भिन्न एवं अभिन्न दोनों बतलाया है। सामान्यतया जीव एवं ब्रह्म एक हैं, लेकिन कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व की अपेक्षा से भिन्न भी हैं । यहाँ स्पष्ट अनेकान्त का प्रभाव है। १. समकालीन दार्शनिक चिन्तन । डॉ. मिश्र । पृ० ८८ ॥द्वि. संस्करण। २. The life of Ramkrishna by Romain Rolland P. 67. ३. समकालीन दार्शनिक चिन्तन पृ. ९४ । Jain Education International 'For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy