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________________ २४२ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि भावार्थ - जिसके बिना लोकव्यवहार सर्वथा नहीं चलता, उस भुवन के श्रेष्ठ गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार हो। .. इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. थोमसन ने कहा है - “Jain logic is very high. The place of Syadvada in it is very important. It throws a fine light upon the various conditions and states of thing." (न्यायशास्त्र में जैन न्याय उच्च है। उसमें स्याद्वाद का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वस्तुओं की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों पर वह सुन्दर प्रकाश डालता है ) ____ महामहोपाध्याय रामशास्त्री ने कहा है “स्याद्वाद जैन दर्शन का अभेद किला है। उसमें प्रतिवादियों के मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सकते हैं।" महात्मा गाँधी स्याद्वाद के विषय में कहते हैं, “स्याद्वाद मुझे बहुत प्रिय है। उसमें मैंने मुसलमानों की दृष्टि से उनका, ईसाइयों की दृष्टि से उनका, इस प्रकार अन्य सभी का विचार करना सीखा। मेरे विचारों को या कार्य को कोई गलत मानता तब मुझे उसकी अज्ञानता पर पहले क्रोध आता था। अब में उनके दृष्टिबिन्दु, उनकी आँखों से देख सकता हूँ। क्योंकि मैं जगत् के प्रेम का भूखा हूँ। स्याद्वाद का मूल अहिंसा और सत्य का युगल आगम साहित्य के मनीषी आचार्य श्री तुलसी ने कहा - "स्याद्वाद एक समुद्र है जिसमें सारे वाद विलीन हो जाते हैं।" स्याद्वाद एक तर्क-व्यूह के रूप में गृहीत नहीं हुआ, किन्तु सत्य के एक द्वार के रूप में गृहीत हुआ । जैन दर्शन में स्यावाद का इतना अधिक महत्त्व है कि आज स्यावाद जैन दर्शन का पर्याय बन गया है। जैन दर्शन का अर्थ स्याद्वाद के रूप में लिया जाता है। वास्तव में स्यावाद जैन दर्शन के प्राण हैं। जैन आचार्यों के सारे दार्शनिक चिन्तन का आधार स्याद्वाद है। जैन तीर्थंकरों ने मानव की अहंकारमूलक प्रवृत्ति और उसके स्वार्थी वासनामय मानस का स्पष्ट दर्शन कर उन तत्त्वों की ओर प्रारम्भ से ही ध्यान आकृष्ट किया जिससे मानव की दृष्टि का एकांगीपन दूर हो और उसमें अनेकांगिता का समावेश हो तथा अपनी दृष्टि की तरह सामने वाले की दृष्टि का भी सम्मान सीखे और उसके प्रति सहिष्णु बने । दृष्टि में इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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