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________________ २३२ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि के एक पद का ज्ञान भी सफल है, अन्यथा कोटि-कोटि शास्त्रों को पढ़ लेने पर भी कोई लाभ नहीं होता। हरिभद्रसूरि ने लिखा है - आग्रहशील व्यक्ति युक्तियों को उसी जगह खींचतान करके ले जाना चाहता है जहाँ पहले से उसकी बुद्धि जमी हुई है, मगर पक्षपात से रहित मध्यस्थ पुरुष अपनी बुद्धि का निवेश वहीं करता है जहाँ युक्तियाँ उसे ले जाती हैं। अनेकान्त दर्शन यही सिखाता है कि युक्ति-सिद्ध वस्तु-स्वरूप को ही शुद्ध बुद्धि से स्वीकार करना चाहिए। बुद्धिका यही वास्तविक फल है। जो एकान्त के प्रति आग्रहशील है और दूसरे सत्यांग को स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं है, वह तत्त्व रूपी नवनीत नहीं पा सकता । गोपी नवनीत तभी पाती है जब वह मथानी की रस्सी के एक छोर को खींचती है और दूसरे छोर को ढीला छोड़ती है। अगर वह एक ही छोर को खींचे और दूसरे को ढीला न छोड़े तो नवनीत नहीं निकल सकता। इसी प्रकार जब एक दृष्टिकोण को गौण करके दूसरे दृष्टिकोण को प्रधान रूप से विकसित किया जाता है तभी सत्य का अमृत हाथ लगता है। अतएव एकान्त के गन्दले पोखर से दूर रह कर अनेकान्त के शीतल स्वच्छ सरोवर में अवगाहन करना ही उचित है । स्याद्वाद का उदार दृष्टिकोण अपनाने से समस्त दर्शनों का सहज ही समन्वय साधा जा सकता है। आचार्य समन्तभद्र ने स्पष्ट किया है, “स्यावाद और केवलज्ञान दोनों ही वस्तुतत्त्व के प्रकाशक हैं। भेद इतना ही है कि केवलज्ञान वस्तु का साक्षात् ज्ञान कराता है जबकि १. यस्य सर्वत्र समता नयेषु तनयेष्विव । तस्यऽनेकान्तवादस्य क्व न्यूनाधिकशेमुषी तेन स्याद्वाद्मालम्ब्य सर्वदर्शनतुल्यताम्। मोक्षोद्देशा विशेषेण य: पश्यति स शास्त्रवित् ।। माध्यस्थ्यमेव शास्त्रार्थो येन तत्चारु सिद्धयति ।। स एव धर्मवादः स्यादन्यद् बालिशवल्गनम् ।। माध्यस्थसहितं होकपदज्ञानमपि प्रमा। शास्त्र कोटिपृथैवान्या तथा चोक्तं महात्मना ।।" २. आग्रही बत निनीषति युक्तिं । यत्र तत्र मतिरस्य निविष्टा ।। पक्षपातरहिस्य तु युक्ति: यज्ञ तत्र मतिरेति निवेशम् ।। ३. एकेनाकर्षन्ती श्लथयन्ती वस्तुतत्वमितरेण अन्तेन जयति जैनी नीतिर्मन्थाननेत्रमिव गोपी ।। - ज्ञानस्सार : उपाध्याय यशोविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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