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________________ १६४ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि समत्व-योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक (१) सामायिक का अर्थ तथा स्वरुप : 'सामायिक' शब्द का मूल है सम । सम का अर्थ है समान या तुल्य । अर्थात् सभी आत्मा समान हैं - यही सामायिक है । संस्कृत भाषा में 'आय' का अर्थ होता है लाभ ! सम+आय = समाय ! मतलब कि सम का लाभ ! 'समाय' को 'इक' प्रत्यय जोड़ने से प्रथम वर्ण 'स' में रहा हुआ स्वर (अ) का दीर्घ (आ) में परिवर्तन हो जाता है। सम+आय + इक = सामायिक । जिसमें सम का लाभ होता है वह सामायिक | समय यानी काल । समय + इक = सामयिक । जो कार्य निश्चित समय पर होता है व सामयिक कहा जाता है। साप्ताहिक और मासिक आदि के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है वह शब्द है सामयिक । (ऐसे कितने ही लोग हैं जो नहीं जानते कि ये दोनों शब्द अलग अलग हैं और दोनों के अर्थ और उच्चारण में भिन्नता है) इसी प्रकार से जैन धर्म में 'सामायिक' शब्द का प्रयोजन विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ में किया गया है और अति प्राचीन काल से ही रूढ़ हुआ है। तदुपरांत सामायिक के समानार्थ शब्दों का प्रयोजन भी शास्त्र ग्रंथों में किया गया है । 'आवश्यक निर्युक्ति' में यह भी कहा गया है कि 'सामायिक' के 'सम' शब्द के 'सम' और 'साम्य' जैसे पर्याय भी होते हैं । दृष्टान्त रूप से साम समं च सम्मं मिइ सामाइअस्स एगट्ठा । महुर परिणाम सामं, समं तुला, सम्मं खीर खंड जुई । ( 'साम, सम और सम्म ये सामायिक के अर्थ हैं । मधुर परिणाम साम, तुला (तराजू) जैसा परिणाम वह सम और खीर और शक्कर एक रूप बन जाये ऐसा परिणाम वह सम्म ) 'सामायिक' एक ऐसी कला है, एक ऐसा वैज्ञानिक उपक्रम है जो और व्यवस्थित मानव-व्यवहार और धर्म दोनों की सिद्धि प्राप्त कर सकता है। सामायिक का अर्थ है समय से निर्धारित की गई ऐसी समता - बराबरी - यथानुरूप, याथातथ्य, अर्थात् जैसी चाहिए वैसी सुनियोजित प्रवृत्ति है जो जीवन के लक्ष्य को शांति से पूर्ण करती है । सामायिक वह की निम्न प्रकार की भिन्न भिन्न व्याख्याएँ शास्त्रकारों ने दी हैं । राग और द्वेष के वशन होकर समभाव मध्यस्थ भाव में रहना अर्थात् सबके साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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