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________________ १६० समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि चारित्र और गीता में निष्काम कर्म या अकर्म कहा गया है। गीता के अनुसार निष्काम कर्म या कर्मयोग के अन्तर्गत दैवीय गुणों अर्थात् अहिंसा, आर्जव, स्वाध्याय, दान, संयम, निर्लोभता, शौच आदि सदगुणों का सम्पादन, स्वधर्म अर्थात् अपने वर्ण और आश्रम के कर्तव्यों का पालन और लोकसंग्रह (लोक - कल्याणकारी कार्यों का सम्पादन) आता है। इसके अतिरिक्त भगवद्भक्ति एवं अतिथि सेवाभी उसकी चारित्रिक साधना का एक अंग है। शील - मनुस्मृति में शील, साधुजनों का आचरण (सदाचरण) और मन की प्रसन्नता (इच्छा, आकँक्षा आदि मानसिक विक्षोभों से रहित मन की प्रशान्त अवस्था) को धर्म का मूल बताया गया है। वैदिक आचार्य गोविन्दराज ने शील की व्याख्या रागद्वेष के परित्याग के रूप में की है। (शील रागद्वेषपरित्याग इत्याह ) । हारीत के अनुसार ब्रह्मण्यता, देवपितृभक्तिता, सौम्यता, अपरोपतापिता, अनसूयता, मृदुता, अपारूष्य, मैत्रता, प्रियवादिता, कृतज्ञता, शरण्यता, कारण्य और प्रशान्तता - यह तेरह प्रकार का गुण समूह शील है। सामायचारिक:आपस्तम्ब धर्मसूत्र के भाष्य में सामयाचारिक शब्द की व्याख्या निम्न प्रकार की गई है - आध्यात्मिक व्यवस्था को 'समय' (धर्मज्ञसमय:) कहते हैं वह तीन प्रकार का होता है - विधि, प्रतिषेध और नियपआचारों का मूल समय' (सिद्धान्त) में होता है। 'समय' से उत्पन्न होने के कारण वे सामायाचारिक कहलाते है। अम्युदय और निःश्रेयस के हेतु अपूर्व नामक आत्मा के गुण को धर्म कहते हैं। वैदिक परम्परा का यह सामयाचारिक शब्द जैन परम्परा के समाचारी (समयाचारी) और सामायिक के अधिक निकट है। आचारांग में 'समय' शब्द समता के अर्थ में और सूत्रकृतांग में सिद्धान्त' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जैन - परम्परा में समता से युक्त आचार को सामायिक' और सिद्धान्त (शास्त्र) से निसृत आचार नियमों को 'समाचारी' कहा गया है। गीता भी शास्त्रविधान के अनुसार आचरण का निर्देश कर सामयाचारिक या समाचारी के पालन की धारणा को पुष्ट करती है। १. मनुस्मृति २/६ २. (अ) मनुस्मृति टीका २/६ (ब) हिन्दू धर्मकोश पृ०.६३१ ३. मनुस्मृति टीका २/६ ४. आपस्तम्ब धर्मसूत्र - भाष्य (हरदत्त) १।१।१-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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