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________________ १५८ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि २. आत्माधिपत्य, लोकाधिपत्य और धर्माधिपत्य की दृष्टि से भी शील तीन प्रकार का है। आत्मगौरव या आत्म-सम्मान के लिए पाला गया शील आत्माधिपत्य है। लोक निन्दा से बचने के लिए अथवा लोक में सम्मान अर्जित करने के लिए पाला गया शील लोकाधिपत्य है। धर्म के महत्त्व, धर्म के गौरव और धर्म के सम्मान के लिए पाला गया शील धर्माधिपत्य है। ३. परामृष्ट, अपरामृष्ट और प्रतिप्रश्रब्धि के अनुसार शील तीन प्रकार का है। मिथ्यादृष्टि लोगों का आचरण परामृष्ट शील है। मिथ्यादृष्टि लोगों में भी जो कल्याणकर या शुभ कर्मों में लगे हुए हैं उनका शील अपरामृष्ट है, जबकि सम्यक दृष्टि के द्वारा पाला गया शील प्रतिप्रश्रब्धि शील ४. विशुद्ध, अशुद्ध और वैमतिक के अनुसार शील तीन प्रकार का है। आपत्ति या दोष से रहित शील विशुद्ध शील है। आपत्ति या दोषयुक्त शील अविशुद्ध शील है। दोष या उल्लंघन सम्बन्धी बातों के बारे में जो संदेह में पड़ गया है, उसका शील वैमतिक शील है। ___५. शैक्ष्य, अशैक्ष्य और न-शैक्ष्य -नअशैक्ष्य के अनुसार शील तीन प्रकार का है। मिथ्या दृष्टि का शील न - शैक्ष्य में - अशैक्ष्य है। सम्यक्दृष्टि का शील शैक्ष्य है और अर्हत् का शील अशैक्ष्य है। शील का प्रत्युपस्थान : काया की पवित्रता, वाणी की पवित्रता और मन की पवित्रता ये तीन प्रकार की पवित्रताएँ शील के जानने का आकार (प्रत्युपस्थान) हैं अर्थात् कोई व्यक्ति शीलवान है या दुःशील है, यह उसके मन, वचन और कर्म की पवित्रता के आधार पर ही जाना जाता है। शील का पदस्थान : जिन आधारों पर शील ठहरता है, उन्हें शील का पदस्थान कहा जाता है। लज्जा और संकोच इसके पदस्थान है। लज्जा और संकोच के होने पर ही शील उत्पन्न होता है और स्थित रहता है, उनके न नहोने पर न तो उत्पन्न होता है और न स्थिर रहता है। शील के गुण : शील के पाँच गुण है - १. शीलवान व्यक्ति अप्रमादी होता है और अप्रमादी होने से वह विपुल धन-सम्पत्ति प्राप्त करता है। १. जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग, पृ. ६० २. वही पृ. ९० ३. विसुद्धिमग्ग (भूमिका), पृ० २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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