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________________ १५४ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि १. सामायिक चारित्र: वासनाओं, कषायों एवं राग-द्वेष की वृत्तियों से निवृत्ति तथा समभाव की प्राप्ति सामायिक चारित्र है। व्यवहारिक दृष्टि से हिंसादि बाह्य पापों से विरति भी सामायिक चारित्र है। सामायिक चारित्र दो प्रकार का हैं - (अ) इत्वरकालिक - जो थोड़े समय के लिए ग्रहण किया जाता है और (ब) यावत्कथित - जो सम्पूर्ण जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है। २. छेदोपस्थापनीय चारित्र : जिस चारित्र के आधार पर श्रमण जीवन में वरिष्ठता और कनिष्ठता का निर्धारण होता है वह छेदोपस्थापनीय चारित्र है। यह सदाचरण का बाह्य रूप है। इससे आचार के प्रतिपादित नियमों का पालन करना होता है और नियम के प्रतिकूल आचरण पर दण्ड देने की व्यवस्था होती है। ३. परिहारविशुद्धि चारित्र : जिस आचरण के द्वारा कर्मों का अथवा दोषों का परिहार होकर निर्जरा के द्वारा विशुद्धि हो वह परिहारविशुद्धि चारित्र है। ४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र : जिस अवस्था में कषाय - वृत्तियाँ क्षीण होकर किंचित् रूप में ही अवशिष्ट रही हों, वह सूक्ष्म सम्पराय चारित्र है। ५. यथाख्यात चारित्र : कषाय आदि सभी प्रकार के दोषों से रहित निर्मल एवं विशुद्ध चारित्र यथाख्यात चारित्र है। यथाख्यात चारित्र निश्चयचारित्र है। चारित्र का त्रिविध वर्गीकरण वासनाओं के क्षय, उपशम और क्षयोपशम के आधार पर चारित्र के तीन भेद हैं। १. क्षायिक, २. औपशमिक और ३. क्षायोपशमिका क्षायिक चारित्र हमारे आत्म स्वभाव से प्रतिफलित होता है उसका स्रोत हमारी आत्मा ही है, जब कि औपशमिक चारित्र में यद्यपि आचरण सम्यक् होता है, लेकिन आत्मस्वभाव से प्रतिफलित नहीं होता है। वह कमों के उपशम से प्रगट होता है। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में क्षायिक चारित्र में वासनाओं का निरसन हो - १. जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग, पृ. ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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