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________________ १०६ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि अधिकार में है, अन्य प्राणियों में यह विशेषता नहीं पाई जाती । पशु दूसरे का दर्द कदाचित् ही अनुभव कर पाता है, पर मनुष्य दूसरे के दर्द को देख हमदर्द बनता है। सहानुभूति से ही व्यक्तित्व में पूर्णता का विकास होता है। इसी के आधार पर मनुष्य निजात्मा में विश्वात्मा का प्रतीक बन जाता है, दूसरों के हृदय की बात सुनने-जानने लग जाता है । सहानुभूति या हमदर्दी ऐसा गुण है, जो विकास एवं सार्थकता पाकर मनुष्य को देवत्व ही नहीं, भगवत्त्व तक पहुँचा देता है। सहानुभूति की उष्मा पत्थर-हृदय को भी पिघलाकर मोम बना देती है। उसकी शीतल और मनोरंजक लहरें दुःखी आत्माओं में प्रसन्नता और नवजीवन का संचार कर देती है। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् बालजाक ने लिखा है - "सहानुभूति व्यक्ति को गरीबों व पीड़ितों के प्रति खींचती है। उनकी भूख तथा पीड़ा का अनुभव उसे हो जाता है। सहानुभूति का आर्द्रभाव अनुभव को तद्रूप बना देता है । दीन-दुःखी को जब तक देखता है उस समय तक वह स्वयं भी दीन-दुःखी बना रहता है । किसी की सेवा-सहायता में किया हुआ अपना कार्य वह परमात्मा की उपासना में किया कर्त्तव्य ही मानता और अनुभव करता है। प्राणीमात्र से इस प्रकार की एकात्मता, अध्यात्म (समता) योग की वह कोटि है जो बड़ी-बड़ी तपस्या, साधना, जप, या उपवाससे भी कठिनतापूर्वक उपलब्ध हो सकती है।" सहानुभूति के विकास के साथ चार अन्य सद्गुणों का विकास होता है - (१) दयाभाव, (२) भद्रता, (३) उदारता और (४) अन्तर्दृष्टि । मानव के प्रति प्रेम, करुणा और सहानुभूति में पारंगत अल्बर्ट स्वाइत्जर से किसी ने पूछा -- 'संसार में भीषण दुःख और कष्ट हैं, इस सम्बन्ध में आपके क्या विचार है ?' इस पर उन्होंने हँसकर उत्तर दिया - "धरती पर कदाचित् वर्षा न हो, पानी की एक बूंद भी न रहे, तो भी मनुष्य के हृदय में जब तक करुणा की झलक है, आँखों में दया की चमक है, मुख पर प्रेम की भाषा है, मन में मदानप्रति की तरंग है तब तक धरती कभी बंजर हो ही नहीं सकती।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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