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________________ विषयानुक्रमणिका गाथा संख्या विषय ७७९ ७८० ७८१.७८२ ७८३ ७८४.७८५ ७८६,७८७ ७८८, ७८९ ७९० ७९१ ७९२ ७९३ ७९४ ७९५ ७९६-८०२ ८०३,८०४ ८०५ ८०६ ८०७ ८०८ ८०९,८१० ८११ ८१२ ८१३ ८१४ ८१५ ८१६ अर्थमंडली की विधि | शिष्य का प्रश्न ज्येष्ठ कौन ? इसका समाधान । मंडली की विधि को वितथ करने पर प्राप्त प्रायश्चित्त । आगमों के लिए तरुणधर्मा कौन ? तरुणधमार्थ का विवेचन | गर्वित की व्याख्या । प्रकीर्णप्रज्ञ का स्वरूप | निह्नवी का स्वरूप । तितिणिक आदि को सूत्रार्थ देने पर प्रायश्चित्त । क्षेत्र, काल और पुरुष का भलीभांति जानकर ही गुह्य का प्रकाशन | अनुज्ञात और अननुज्ञात के आधार पर चतुभंगी । परिणामक, अपरिणामक और अतिपरिणामक तीनों में प्रतिषेध किनका ? परिणामक का स्वरूप | अपरिणामक का स्वरूप | अतिपरिणामक का स्वरूप । मति के आधार पर तीनों का स्वभाव व आम्र के दृष्टांत के आधार पर उनकी परीक्षा सुनने की कला । कल्प और व्यवहार की वाचना किनको ? कब ? पहला उद्देशक तालपलंब पदं सूत्र १ निर्ग्रन्य कौन ? सूत्र में स्थित 'नो कप्पई' का विवेचन । प्रलंब क्या ? सारी अनुज्ञा मंगल नहीं, सारा प्रतिषेध अमंगल नहीं। इसका विवेचन । सूत्र मांगलिक ही है। सूत्र दर्पण के समान मंगल रूप । सूत्र में यदि सर्व निषेध हो तो शिष्य की कल्पना सही। प्रतिषेध के छह निक्षेप । नोकार से प्रतिषेध करने का कारण। प्रतिषेधक में चार वर्णों की व्याख्या । Jain Education International गाथा संख्या विषय ८१७ ८१८ ८१९,८२० ८२१ ८२२ ८२३ ८२४ ८२५ ८२६,८२७ ८२८ ८२९ ८३० ८३१ ८३२ _८३३-८३५ ८३६ ८३७ ८३८ ८३९ ८४० ८४१-८४३ ८४४-८४६ ८४७,८४८ ८४९ ८५० ८५१ ८५२ ८५३-८५७ ८५८ ८५९,८६० ८६१ ૮૬૨ For Private & Personal Use Only प्रतिषेधक वर्णों का निदर्शन। नकार से प्रतिषेध का ज्ञान । संयोग, समवाय, सामान्य और विशेष चार प्रकार के नकार का विवेचन | अकार और नोकार से केवल वर्तमान काल का ही प्रतिषेध | 'नोकार' शब्द का औचित्य । भाव ग्रंथ के प्रकार । सग्रंथ और निर्ग्रन्थ का विवेक । बाह्य ग्रंथ के दस प्रकार । क्षेत्र, वास्तु का विवेचन | ४५ धन, धान्य और संचय का विवेचन । मित्र, ज्ञाति तथा संयोग का विवेचन । यान, आदि बाह्य ग्रंथ का विवेचन। चौदह प्रकार का आभ्यन्तर ग्रंथ । निर्ग्रन्थ कहलाने का कारण । उपशमश्रेणी में कौन १ सराग संयमी निर्ग्रन्थ कैसे ? निष्कषायी कौन ? मुनि उपकरण आदि ग्रहण करते हुए भी बाह्य ग्रंथ से मुक्त कैसे ? 'आम' शब्द के निक्षेप । द्रव्य आम का विवेचन । पर्याय आम के प्रकार व विवेचन | भाव आम के प्रकार और उनका विवेचन । ताल शब्द के चार निक्षेप तथा विवेचन | प्रलंब के चार निक्षेप तथा विवेचन । ताल, तल और प्रलंब का स्वरूप । मूल प्रलंब के उदाहरण | अग्र प्रलंब के उदाहरण । शिष्य द्वारा प्रश्न - मूल तथा अग्र प्रलंब का प्रतिषेध है तो क्या शाखा आदि लेना कल्पता है या नहीं ? आचार्य द्वारा समाधान | भिन्नपद के चार निक्षेप भाव और द्रव्य के भिन्न- अभिन्न के आधार पर चतुर्भगी। मंगों के आधार पर प्रायश्चित परीत्त प्रलंग और अनन्तकायिक प्रलंब ग्रहण में प्रायश्चित्त का विवेक। www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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