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________________ ३८ बृहत्कल्पभाष्यम् १०८ गाथा संख्या विषय स्व पर्याय और पर पर्याय में परस्पर संबद्धता और असंबद्धता। अक्षर के प्रमाण व उसके स्वरूप का निरूपण। पुद्गलास्तिकाय के आश्रय से गुरु, लघु आदि पर्यायों पर विचार। पुद्गलास्तिकाय में गुरुलघु द्रव्य सबसे कम। प्रज्ञा के आधार पर गुरु लघु पर्याय का पृथक्करण। अगुरुलघु पर्याय परिमाण का चिंतन। चारों अरूपी अस्तिकाय अनंत अगुरुलघु पर्यायों से संयुक्त। ज्ञान सर्वाकाश प्रदेशों से अनंतगुणा अधिक। ज्ञान अक्षर है। ज्ञानावरणीय कर्म अनंत अविभक्त आवरण से आवृत। ज्ञान का अनन्तवां भाग सदा उद्घाटित। स्थावरकायिक में ज्ञान अव्यक्त। अनक्षर श्रुत के प्रकार। अनक्षरश्रुत का उदाहरण सहित विवेचन। संज्ञी की परिभाषा। कालिक्युपदेशिकी संज्ञा वाले प्राणियों के मानसिक व्यापार कैसे? मनोद्रव्य द्वारा प्रकाशन में भाव विषयक उपयोग। असंज्ञी प्राणियों में विषयों का उपयोग मंद। असंज्ञी प्राणी और मूर्च्छित प्राणी की तुलना। ८३,८४ चेतना भाव की तुल्यता होने पर भी असंज्ञी में विषयावग्रह में पटुता नहीं। हेतुवाद की दृष्टि से संज्ञी और असंजी। ८६,८७ दृष्टिवाद की अपेक्षा संज्ञी और असंज्ञी। स्वामित्व की अपेक्षा लौकिक और लोकोत्तरिक श्रुत में सम्यक् मिथ्या की भजना। मनःपर्यवज्ञान पर्यन्त अवाय। सम्यक्त्व के पांच प्रकार। सर्वप्रथम कर्मों की बंध-स्थिति। मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति में आयुष्य के अतिरिक्त सर्व कर्मों की स्थिति उत्कृष्ट। सम्यग्दर्शन की अन्तरायभूत ग्रंथी का भेदन कब? करण (परिणाम विशेष) के तीन प्रकार। तीनों करणों का कार्य। गाथा संख्या विषय ९६ करणों के आधार पर सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के आठ उदाहरण। ९७ यथाप्रवृत्तिकरण में संबंधित (प्रस्तर) दृष्टांत। ९८ सम्यक्त्वलाभ के दो उपाय। तद्गत 'पथ' एवं 'ज्वर' का दृष्टांत। ९९ अपूर्व करण से संबंधित 'वस्त्र' तथा 'जल' का उदाहरण। १००,१०१ अभव्य ग्रंथि के पास पहुंच कर दूर कैसे होते हैं ? भव्य ग्रंथ भेद कर आगे कैसे बढ़ते हैं ? समाधान के लिए 'पिपीलिका' दृष्टान्त। १०२,१०३ तीनों करणों से संबंधित तीन 'पुरुषों' का दृष्टान्त। १०४ सर्व संसारी जीवों के साथ त्रिकरणों की योजना। १०५ दृष्टान्तगत स्तब्ध पुरुष का उपनय। १०६ अनिवृत्तिकरण द्वारा प्राप्त सम्यक्त्व की श्रावकत्व से मोक्ष तक क्रमशः संप्राप्सि। १०७ उपशमश्रेणी और क्षपक श्रेणी दोनों एक साथ एक भव में नहीं हो सकती। उपशमक सम्यक्त्वदृष्टि कौन कहलाता है ? १०९ मिथ्यात्व के तीन प्रकार। ११० अधिगम और नैसर्गिक सम्यक्त्व प्राप्ति के लक्षण। मिथ्यात्व पुद्गलों के तीन पुंज। पुद्गल पुंजों में संक्रमण संभव। ११३-११६ कौनसा पुंज किसमें संक्रमण कर सकता है? इसका विवेचन। ११७ क्षपक, त्रिपुंजी, द्विपुंजी आदि कौन होता है ? ११८ उपशम सम्यक्त्वी कौन? उपशांत मिथ्यात्व कालान्तर के बाद पुनः उद्भूत हो जाता है। १२० उपशांत मिथ्यात्व में 'इलिका' का दृष्टांत। मिथ्यात्व उदयावलिका में प्रविष्ट होने पर अंतर्मुहूर्त तक औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति। १२२ औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति में 'दवाग्नि' का उदाहरण। १२३ औपशमिक सम्यक्दृष्टि जीव के शेष कर्मों का उदय निष्प्रभ। १२४ नैरयिक साता का अनुभव कब करते हैं ? १२५ सम्यक्त्व लाभ से ज्ञान लाभ। ११२ १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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