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________________ विषयानुक्रमणिका ३७ ३८ v४०m.ww.Goow Www. ૪૨ गाथा संख्या विषय पीठिका तीर्थंकरों को नमस्कार और बृहत्कल्पभाष्य के विषय में निर्देश। नंदी और मंगल का अपेक्षाकृत भेदानुभेद। चार प्रकार के मंगल और नंदी। नाम मंगल का विवेचन। ७,८ स्थापना मंगल का विवेचन। ९,१० द्रव्य तथा भाव मंगल का विवेचन। पदार्थ मात्र में चारों निक्षेपों का स्वीकरण। १२ नाम इन्द्र का लक्षण। स्थापना इन्द्र का लक्षण तथा नाम स्थापना में अंतर। द्रव्य इन्द्र का लक्षण। भाव इन्द्र का लक्षण। १६-१८ इन्द्र पद के भाव निक्षेप में विपर्यास और उसका समाधान। नाम इन्द्र तथा स्थापना इन्द्र में और द्रव्य इन्द्र तथा भाव इन्द्र में अंतर। २०,२१ मंगलाचरण करने का प्रयोजन और उसकी सिद्धि के लिए उपचार का निर्देश। तद्गत 'नृप-निधिविद्या-मंत्र' आदि के दृष्टांत। ग्रंथ के आदि, मध्य तथा अंत में मंगल क्यों? मंगल करने से अनवस्था दोष क्यों नहीं होता इसका समाधान। नंदी के चार निक्षेप। प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान का लक्षण। २६,२७ वैशेषिकों द्वारा स्वीकृत प्रत्यक्ष ज्ञान के लक्षण में दूषण। उदाहरण सहित। २८ इन्द्रियों से ग्राह्य ज्ञान लैंगिकज्ञान है। २९ प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान की व्याख्या। दोनों ज्ञानों के प्रकार। गाथा संख्या विषय ३१-३३ द्रव्यतः अवधिज्ञान का स्वरूप और सीमा। ३४ क्षेत्रतः, कालतः और भावतः अवधिज्ञान का स्वरूप। ३५,३६ मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप। केवलज्ञान कब प्राप्त होता है। केवलज्ञान का स्वरूप। आभिनिबोधिक ज्ञान का लक्षण। आभिनिबोधिक ज्ञान के प्रकार। श्रुतज्ञान का लक्षण। श्रुतज्ञान के प्रकार। अक्षरश्रुत के प्रकार। ४४,४५ संज्ञाक्षरश्रुत तथा लब्ध्यक्षरश्रुत का स्वरूप तथा लब्ध्य क्षश्रुत के प्रकार। अनुपलब्धि और उपलब्धि के प्रकार। अत्यन्त अनुपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। सामान्य अनुपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। विस्मृति अनुपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। सादशतः और विपक्षतः उपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। उभयतः (सादृशतः-विपक्षतः) उपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। ५२ औपम्यतः उपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। ५३ आगमोपलब्धि का सोदाहरण लक्षण। पांचों उपलब्धियां संज्ञी में ही होती हैं और तीनों अनुपलब्धि असंज्ञी में होती हैं। व्यञ्जनाक्षर का लक्षण। ५६,५७ व्यञ्जनाक्षर के भिन्न-भिन्न आधार से होने वाले प्रकार। ५८ अभिधेय से अभिधान की भिन्नता। अपने अर्थ से अभिधान की अभिन्नता। व्यञ्जनाक्षर के दो-दो पर्याय। WW Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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