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________________ ३१ गाथा पत्र बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम । विषय निर्बन्धीओने शाला आदिमां वसवाथी लागता दोपोनुं वर्णन अने प्रस्तुत सूत्रनी सार्थकता २६६८-७५ ७४९-५० २६७६-२७३१ व्यवशमनप्रकृत सूत्र ३४ ७५१-६९ भिक्षु, आचार्य, उपाध्याय, भिक्षुणी आदिए एकवीजा साथे केश थयो होय तो परस्पर उपशम धारण करीने क्लेशनी शान्ति करी लेवी जोइए. कोई भिक्षु, आचार्यादि पोते शान्त थाय पण सामी व्यक्ति शान्त न थाय तो जे शान्त थाय ते आराधक छे अने जे शान्त न थाय ते विराधक छे एम समजबुं २६७६ व्यवशमनप्रकृतनो पूर्वप्रकृत साथे सम्बन्ध ७५१ ३४ व्यवशमनसूत्रनी व्याख्या ७५१ २६७७ सूत्रमा मात्र भिक्षुशव्द होई चशब्दद्वारा आचार्य, उपाध्यादिनुं ग्रहण ७५२ २६७८-७९ व्यवशमित अने प्राभृतशब्दना एकार्थिको तथा इच्छा अने आढाशब्दनो अर्थ ७५२-५३ २६८०-९२ 'अधिकरण'पदना निक्षेपो ७५३-५८ २६८०-८१ द्रव्यअधिकरण- स्वरूप ७५३ द्रव्यअधिकरणना निर्वर्तना, निक्षेपणा, संयोजना अने निसर्जना ए चार प्रकारो अने तेनुं स्वरूप तेम ज प्रसंगोपात योनिप्राभृतादि ग्रंथ द्वारा अश्वोत्पादक सिद्धसेनाचार्य अने द्रव्ययोगनो उपदेश करनार इतर आचार्यनां दृष्टान्तो २६८२-९२ भावाधिकरणनुं स्वरूप ७५४-५८ २६८२-८४ भावाधिकरण-कषायद्वारा जीवो केवी रीते जुदी जुदी गतिमां जाय छे तेनुं स्वरूप ७५४-५५ १आ प्रकृतने भाष्यकारे गा. ३२४२ मां प्राभृतसूत्र तरीके अने चूर्णिकार-विशेषचूर्णिकारोए अधिकरणसूत्र तरीके जणावेल छे (जुओ मुद्रित पृष्ठ ९०६ टि. २) ते छतां प्रस्तुत सूत्रना वास्तविक आशयने ध्यानमा लई अमे आ प्रकृतनुं नाम व्यवशमनप्रकृतम् एवं आप्यु छ । प्रात अने अधिकरण शब्द एकार्थिक छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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