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________________ ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन ऋषिभाषित के ऋषियों की परंपरा ऋषिभाषित के निम्न 45 अध्यायों में 45 ऋषियों के उपदेशों का प्रस्तुतिकरण हुआ है।१३ मात्र 20 वें उत्कटवादी नामक अध्याय में प्रस्तोता किसी ऋषि के नाम का उल्लेख नहीं है। इस अध्याय में भौतिकवादी विचारों का प्रस्तुतीकरण हुआ है। ___ 1-नारद (नारद) 2-वज्जियपुत्त (वात्सीय पुत्र) 3- दविल (असित देवल) 4- अंगरिसि (अंगिरस भारद्वाज), 5- पुप्फसाल (पुष्पशालपुत्र) 6- वक्कलवीरि (वक्कलचीरी), 7-कुम्मापुत्त (कूर्मापुत्र), 8-केतलिपुत्त (केतलीपुत्र), 9-महाकासव (महाकाश्यप), 10-तेतलीपुत्त (तेतलीपुत्र),11- मंखलिपुत्त (मंखलिपुत्र), 12जण्णवक्क (याज्ञवल्क्य), 13- भयालि (भयालि), 14- बाहुक (बाहुक), 15मधुरायण (मधुरायण), 16- सोरियायण (शोर्यायण), 17- विदुर (विदुर), 18वरिसव (वारिषेण कृष्ण), 19-आरियायण (आरियायण), 20- उक्कल (उत्कट), 21- गाहावई (गाथापति पुत्र तरूण), 22- गद्दभ (गर्दभाल), 23- रामपुत्त (रामपुत्र), 24- हरिगिरि (हरिगिरि), 25- अंबड़ (अंबड़ परिव्राजक), 26-मातंग (मातङ्ग), 27-वारत्तय (वारजक), 28- अद्द (आर्द्रक), 29- वद्धमाण (वर्द्धमान), 30- वोउ (वायु), 31- पास (पार्श्व)32- पिंग (पिंग), 33- अरूण (महाशालपुत्र अरूण), 34- इसिगिरि (ऋषिगिरि), 35- अद्दालअ (उद्दालक), 36- तारायण (नारायण), 37- सिरिगिरि (श्रीगिरि), 38- साईपुत्त (सारिपुत्र), 39- संजइ (संजय), 40- दीवायण (द्वैपायन), 41- इन्दनाग (इन्द्रनाग), 42- सोम (सोम), 43- जम (यम), 44-वरूण (वरूण) और 45- वेसमणिज्ज (वैश्रमण)। इन ऋषियों को किसी परंपरा विशेष में बांधना एक कठिन कार्य हैं. क्योंकि इनमें कुछ ऋषि तो ऐसे हैं जिनके नामोल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परंपराओं में मिलते हैं। अत: उन्हें किस परंपरा का माना जाय यह निश्चित करना एक कठिन कार्य है। इसी प्रकार इसमें कुछ ऋषि ऐसे भी हैं जिनका उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है, अतः वे किस परंपरा विशेष से संबद्ध रहे होंगे यह आज नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि ऋषिभाषित के उपर्युक्त ऋषियों की परंपरा का निर्धारण करने का एक प्रयत्न प्रो. शुबिंग ने अपनी 'इसिभासियाई' की भूमिका 13 - A. Isibhasyaim page -3 Introduction by Walther Schubring, L.D.Institute, Ahemadabad, 9 नारद-वज्जिय-पुत्ते, असिते अंगरिसि-पुष्फसाले या वक्कलकुम्मा केयलि, कासव तह तेतलिपुत्ते या।2।। मंखलिजण्णभयालि, बाहुय महुसोरियायण विदू। वरिसेकण्है आरिय, उक्कल गाहावई तरुणे।।3।। गद्दभ रामेय तहा, हरिगिरि अम्बड़ मयंग वारत्ता। तत्तो य अद्दए वद्धमाण वाऊ य तीसतिमे।।4।। पासे पिंगे अरुणे, इसिगिरि अदालए य वित्ते य सिरिगिरि सातियपुत्ते, संजय दीवायणे चेव।।5। तत्तो य इंदणागे, सोम यमे चेव होई वरुणे य। वेसमणे य महप्पा, चत्ता पंचेव अक्खाए। 1; -'इसिभासियाई' प्रथम संग्रहणी गाभा.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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