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________________ उपदेश पुष्पमाला / 17 ग्यारहवें अनायतन त्याग द्वार के सन्दर्भ में यह स्पष्ट किया गया है कि साधु को स्वाध्याय हेतु किस स्थान पर निवास करना चाहिये । इसी सन्दर्भ में मुनि अर्हन्नक का कथानक भी दिया गया है किस स्थान पर स्वाध्याय नहीं करना चाहिये इसकी भी चर्चा है । इस द्वार में चैत्य द्रव्य के भक्षण के दुष्परिणाम की भी चर्चा की गई है तथा इस सन्दर्भ में कनकदास नामक श्रावक की कथा दी गयी है। इसी प्रसंग में कुसंग त्याग का उपदेश देते हुये पर तैर्थिकों के साथ रहने को भी अनायतन कहा गया है। बारहवें परपरिवाद-निवृत्तिद्वार में दूसरों की निन्दा के दुष्परिणाम बताते हुये कुन्तलादेवी का उदाहरण दिया गया है। और परपरिवाद के दोषों के सन्दर्भ में सूर्य का उदाहरण दिया गया है। तेरहवें धर्म-स्थिरताद्वार में श्रावक के लिये जिनपूजा का उपदेश देते हुये अष्टोत्तरीपूजा के स्वरूप का विवरण किया गया है। चौदहवें परिज्ञाद्वार में समाधि मरण सम्बन्धी चर्चा उपलब्ध होती. है । इसी द्वार में जीतकल्पभाष्य में वर्णित 23 उपद्वारों की भी चर्चा हुयी है । अन्तिम पन्द्रहवें शास्त्रप्रमाण द्वार में किसे किस प्रकार से बोध प्राप्त होता है ? इसकी चर्चा की गयी है और यह बताया गया है कि कोई सामान्यतया छोटे से निमित को पाकर भी बोध को प्राप्त हो जाता है तो कोई प्रसंग के उपस्थित होने पर भी बोध से वंचित रह जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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