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________________ (२७) पू. आचार्य म. श्री विजय ॐकारसूरिजो म. • पाटण का. व. १ _ 'जिस गांव में स्वप्नों की बोली का घी जिस खाते में ले जाया जाता हो उस अनुसार ले जाना' इस प्रकार साधु सम्मेलन ने ठहराव किया है, ऐसा जो राधनपुर वालों ने पर्चे में छपवाया है, वह सत्य नहीं है। क्योंकि आज भी आनन्दजी कल्याणजी की पेढी पर मूल नकल मौजूद है। उसमें उक्त प्रकार की बात सर्वथा नहीं है । सम्मेलन के ठहराव में जो बात नहीं है, उसे सम्मेलन के नाम से प्रस्तुत करना बहुत ही अघटित है। अतः ऐसी मतिकल्पना से खड़ी की गई बातों से जनता को भ्रम में न डालें, यही उनके लिए भी उचित है। (२८) पू. पंन्यासजी म. सुबोधसागरजी म. अहमदाबाद . (पू. आ. म. श्री सुबोधसागर सू. म.) का. व. २ . आप पूज्यश्री ने राधनपुर संघ के श्रावकों को स्वप्नों की बोली की उपज को देवद्रव्य में ले जाने के विषय में जो सदुपदेश देकर शासनोन्नति का कार्य किया है तथा जो जवाब दिया है वह जानकर हमें बहुत ही प्रसन्नता हुई है। हम अन्तःकरणपूर्वक उसकी अनुमोदना करते हैं। (२९) पू. आचार्य म. विजयरामचन्द्रसूरि महाराज, लालबाग (बम्बई) . का. व. २ राधनपुर के सु. रतिलाल प्रेमचन्द आदि के हस्ताक्षर से प्रकाशित पर्चे में जो मुनि सम्मेलन का ठहराव छपा है वह सम्मे स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 101
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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