SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणीजन विशे प्रीति धरूं, निर्गुण विशे मध्यस्थता, आपत्ति हो, संपत्ति हो, राखुं हृदयमां स्वस्थता, सुखमां रहुं वैराग्यथी, दुःखमां रहुं समता धरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. संकट भले घेराय ने वेराय कंटक पंथमां, श्रद्धा रहो मारी सदा जिनराज ! आगमग्रन्थमां, प्रत्येक पल प्रत्येक स्थळ हैये रहो तुज हाजरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. स्तवन गावा हंमेशा वचन मुज उल्लसित हो, तारां वचन सुणवा हंमेशा श्रवण मुज उल्लसित हो, तुजने निरखवा आंख मारी रहे हंमेशा बहावरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. संसारसुखनां साधनोथी सतत हुं डरतो रहुं, धरतो रहु तुज ध्यानने आंतर व्यथा हरतो रहुं, करतो रहुं दिनरात बस तारा चरणनी चाकरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. धर्मे दीधेलां धन स्वजन हुं धर्मने चरणे धरूं, श्री धर्मनो उपकार हुं क्यारेय पण ना वीसरूं, हो धर्ममय मुज जिंदगी, हो धर्ममय पळ आखरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. मनमां स्मृति, मूर्ति नयनमां, वचनमां स्तवना रहे, मुज रक्तना हर बुंदमां जिनराज ! तुज आज्ञा वहे, पहोंचाडशे मोक्षे मने जिनधर्म एवी खातरी, प्रभु ! आटलुं जनमजनम देजे मने करुणा करी. ७८ (३) (४) (4) (६) (61) (<)
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy