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________________ वात्सल्य सागर तुं प्रभु ! वात्सल्यनो अभिलाषी हुं करुणाझरण तुजमां वहे करुणा अमृतनो प्यासी हुं हुँ सुमतिने शोधुं सदा तुं सुमतिनो भंडार छे आ विश्वमा हे नाथ ! मारो एक तुं आधार छे. (२९) जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे ते दृष्टिने पण धन्य छे .. जे जीभ जिनवरने स्तवे ते जीभने पण धन्य छे पीए मुदा वाणी सुधा ते कर्मयुगलने धन्य छे तुज नाम मंत्र विशद धरे ते हृदयने पण धन्य छे. (३०) शत कोटि कोटि वार वंदन नाथ मारा हे तने तरण तारण हे विभु ! स्वीकार मारा नमनने हे नाथ ! शुं जादु भर्यो 'अरिहंत' शब्दोच्चारमां आफत बधी आशिष बने तुज नाम लेतां वारमां. (३१) याचना संसारनी निःसारता निर्वाणनी रमणीयता, क्षणक्षण रहे मारा स्मरणमां धर्मनी करणीयता, सम्यक्त्वनी ज्योति हृदयमा झळहळे श्रेयस्करी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. (१) सवि जीव करुं शासनरसी आ भावना हैये वहुं, करुणा झरणमा रातदिन हुं जीवनभर वहेतो रहुं, शणगार संयमनो सजु झंखु सदा शिवसुंदरी, प्रभु ! आटलुं जनमोजनम देजे मने करुणा करी. (२) ७८
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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