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________________ जे मालिके आप्या वगरनुं तणखलुं पण ले नहि, वंदन हजारो वार हो ते श्रमणने पळपळ महीं, हुं तो अदत्तादान माटे गाम परगामे भमुं, - आ पापमय... (३) जे इन्द्रियोने जीवननी क्षण एक पण सोंपाय ना, मुज आयऱ्या आखू वित्युं ते इन्द्रियोना साथमां, लागे हवे श्री स्थूलभद्रतणुं स्मरण सोहामj, ... आ पापमय... (४) नवविध परिग्रह जिंदगीभर हुं जमा करतो रह्यो, धनलालसामां सर्वभक्षी मरणने भूली गयो, मूर्छारहित संतोषमां सुख छे खलं जीवननु, आ पापमय... (५) अबजो वरसनी साधनानो क्षय करे जे क्षणमहीं, जे नरकनो अनुभव करावे स्व परने अहि ने अहीं, ते क्रोधथी बनी मुक्त समतायुक्त हुं क्यारे बर्नु, आ पापमय... (६) जिनधर्मतरुना मूल जेवा विनयगुणने जे हणे, जे भलभला ऊंचे चडेलाने य तरणा सम गणे, ते दुष्ट मानसुभटनी सामे बळ बने मुज वामj, आ पापमय... (७) श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्रने जेणे बनाव्या स्त्री अने, संक्लेशनी.जालिम अगनमां जे धखावे जगतने, ते दंभ छोडी सरळताने पामवा हुं थनगर्नु, ___ आ पापमय...(८) - -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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