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________________ ★ चारित्र स्वीकार्या पछी चारित्रपालनथी लहे ! अहमिन्द्र करतां पण अधिक सुख - एम तीर्थंकर कहे ! चारित्रमां आनंदना अनुपम अमृतझरणां वहे ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो ! ★ चारित्रधरना जीवनमां अगवड नथी आफत नथी ! चारित्र धरना जीवनमां नथी चाह के चाहत नथी ! चारित्र जेवी जगतमां कोइ शहनशाहत नथी ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो ! बाळक बने चारित्रधर तो तेय सुरवंदित बने ! देवो अने देवेन्द्र तेने वंदी आनंदित बने ! चारित्रधर्म स्वीकारवा मारुं हृदय स्पंदित बने ! चारित्रमां मुज मन वसो, चारित्र मुज तनमां वसो ! ९ आ पापमय संसार छोडी .... डले अने पगले सतत हिंसा मने करवी पडे, ते धन्य छे जेने अहिंसापूर्ण जीवन सांपडे, क्यारे थशे करुणाझरणथी आर्द्र मारुं आंगणुं, आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं (१) क्यारेक भय क्यारेक लालच चित्तने एवां नडे, व्यवहारमां व्यापारमां जूठ्ठे तरत कहेवुं पडे, छे सत्यमहाव्रतधर श्रमणनुं जीवनघर रळियामणुं आ पापमय... (२) e ७ ८
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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